Thursday, 12 June 2014

निर्जला एकादशी

निर्जला एकादशी 

जेष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहा जाता है। एक ओर जेष्ठ मास की भीषण गर्मी जिसमें सूर्यदेव अपनी किरणों की प्रखर ऊष्मा से मानो अग्नि वर्षा कर रहे हों दूसरी ओर श्रद्धालु धर्म प्राण जनता द्वारा दिन भर निराहार एवं निर्जल उपवास रखना। 

सूर्योदय से सूर्यास्त तक ही नहीं अपितु दूसरे दिन द्वादशी प्रारंभ होने के बाद ही व्रत का पारायण किया जाता है। अतः पूरे एक दिन एक रात तक बिना पानी के रहना वह भी इतनी भीषण गर्मी में यही तो है भारतीय उपासना पद्धति में कष्ट सहिष्णुता की पराकाष्ठा।

हमारे धर्मग्रंथों में इस पर्व को आत्मसंयम की साधना का अनूठा पर्व माना गया है। इस उपासना का सीधा संबंध एक ओर जहाँ पानी न पीने के व्रत की कठिन साधना है वहीं आम जनता को पानी पिलाकर परोपकार की प्राचीन भारतीय परंपरा भी।

मठ, मंदिर एवं गुरुद्वारों में कथा प्रवचन धार्मिक अनुष्ठान एवं शबदकीर्तन आदि के कार्यक्रम जहाँ दिन भर चलते हैं वहीं राहगीरों को बुला-बुला कर बड़ी आस्था के साथ शीतल जल पिलाया जाता है। बस स्टैंडों के आसपास पानी के प्याऊ लगाकर अनेक धार्मिक संगठन दिन भर शीतल जल का वितरण करना बड़े पुण्य का कारण मानते हैं।

निर्जला एकादशी को पानी का वितरण देखकर आप के मन में एक प्रश्न अवश्य आता होगा कि जहाँ इस दिन के उपवास में पानी न पीने का विधान होता है तो यह पानी वितरण करने का क्या औचित्य है ? इसका मूल आशय यह है कि व्रतधारी लोगों के लिए यह एक कठिन परीक्षा की ओर संकेत करता है कि चारों ओर आत्मतुष्टि के साधन रूप जल का वितरण देखते हुए भी उसकी ओर आपका मन न चला जाए।

साधना में यही होता है कि साधक के सम्मुख सारे भोग पदार्थ स्वयमेव उपस्थित हो जाते हैं। वस्तु प्रदार्थ उपलब्ध होते हुए उनका त्याग करना ही त्याग है । अन्यथा उनके न होने पर तो अभाव कहा जाएगा । अतः अभाव को त्याग नहीं कहा जा सकता। दूसरी ओर जो लोग व्रत नहीं करते लेकिन गर्मी के कारण व्याकुल हो जाते हैं और उनको ऐसी स्थिति में एक गिलास शीतल पानी मिल जाता है तो उनकी आत्मा प्रसन्न हो जाती है। अतः इस उपासना का सीधा संबंध एक ओर जहां पानी न पीने के व्रत की कठिन साधना है वहीं आम जनता को पानी पिलाकर परोपकार की प्राचीन भारतीय परंपरा भी।

निर्जला एकादशी व्रत के बारे में महाभारत में महर्षि वेदव्यास के वचन हैं कि पूरे वर्ष में होने वाली एकादशी जिनमें अधिमास भी सम्मिलित है यदि कोई न कर सके तो भी वह निर्जला एकादशी का व्रत करता है तो उसे सभी एकादशियों के व्रत का पुण्य फल प्राप्त होता है। इसीलिए व्यास जी ने भीम सेन को निर्जला एकादशी व्रत करने की प्रेरणा दी क्योंकि जठराग्नि तीव्र होने के कारण भीम सेन बिना खाए रह ही नहीं सकते थे। अतः भीमसेन ने वेद व्यास जी की प्रेरणा से इस व्रत को किया।

निर्जला एकादशी के दिन भगवान विष्णु की आराधना की जाती है। लोग ग्रीष्म ऋतु में पैदा होने वाले फल, सब्जियाँ, पानी की सुराही, हाथ का पंखा आदि का दान करते हैं।

प्राचीन काल में धर्मज्ञ राजा एवं सामर्थ्यवान लोग निर्जला एकादशी को जल एवं गौ दान करना सौभाग्य की बात मानते थे। इसीलिए जल में वास करने वाले भगवान श्रीमन्नारायण विष्णु की पूजा के उपरांत दान-पुण्य के कार्य कर समाज सेवा की जाती रही। आज भी अधिक नहीं तो थोड़ा ही सही श्रद्धालु लोग इस परंपरा का अपनी सामर्थ्य के अनुसार निर्वाह करते हैं।

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