जन्माष्टमी पर विशेष
भगवान श्री कृष्ण ने अपने मुकुट में मोर पंख क्यों धारण
किया ?
एक बार माता सीता प्यास से अति व्याकुल इधर से उधर जंगल
में पानी की तलाश में भटक रहीं थीं, कंठ सूखे जा रहे थे और माता की तलाश ख़त्म होने का नाम
नहीं ले रही थी।
जब एक मोर ने यह देखा तो बहुत व्यथित हुआ । माता की
परेशानी मैं कैसे दूर करूँ यही विचार उसे बेचैन किए जा रहा था । मोर को जल के
सरोवर का पता था, वह अचानक ख़याल करता है कि यदि मैं नाचूँ तो शायद माता का ध्यान थोड़ी देर
के लिए ही सही पर पानी से हटा पाऊँगा । मोर ने पंख फैलाए और नाचने लगा । माता सीता
मोर का नृत्य देख भाव विभोर हो गई । प्यास भूल कर नृत्य में खो गईं ।
यह देख कर मोर बहुत प्रसन्न हुआ कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्री
राम की अर्धांगिनी जगत माता सीता मेरे नृत्य से प्रसन्न हुई और कुछ देर के लिए
प्यास की तड़प को भूलकर मुस्करा उठीं। मोर ने सोचा यदि मैं पंख गिरा दूँ तो माता
और भी प्रसन्न होंगी । मोर ने एक पंख गिराया । माता सीता ने कौतुहल वश पंख उठाया
वाह सुन्दर , अति
सुन्दर । मोर सरोवर की और चलता रहा और पंख गिराता रहा । माँ सीता भी पंख उठाती रही
और प्यास को भूल इस खेल में मगन हो गई । मोर अपने भाग्य पर नाज़ कर रहा था कि मैं
माँ सीता के कुछ काम आया । अहोभाग्य मेरे माँ सीता ने अपने हाथों में मेरे पंख
उठाए हुए हैं ।
तभी माता सीता को सामने पानी का सरोवर दिखाई दिया । माँ
सरोवर की तरफ़ दौड़ पड़ी । उनके हाथ से मोर पंख ज़मीन पर गिर गए और माता सीता उन
मोर पंखो को पैरों से कुचलते हुए सरोवर की तरफ़ बढ़ गई ।
मोर यह देख रोने लगा । कुछ देर पहले जो जिस प्रसन्नता का
वह अनुभव कर रहा था वह लुप्त हो गई और वह विलाप कर करने लगा, अचानक वहाँ माता सीता
को खोजते हुए भगवान श्री राम आ गये । भगवान ने मोर को विलाप करते देखा फिर नीचे
पड़े माता सीता के पैरों तले कुचले पंखो को देखा तो सारा माजरा समझ गए ।
भगवान श्री राम ने एक एक कर वो पंख उठाए और मोर से निवेदन
किया कि आप अब अश्रु मत बहाइए । मेरी अर्धांगिनी से जो ग़लती हुई है उसे क्षमा
करें । आज से ये अश्रु सामान्य अश्रु नहीं रहेंगे । आप को संतान उत्पति के लिए मादा
संसर्ग की आवश्यकता नहीं होगी अपितु आपके अश्रुओं के पान से ही मयूरी संतान उत्पन्न करने में
सक्षम होगी ।
मैं तो वनवासी हूँ अभी इन पंखो को धारण नहीं कर सकता लेकिन
एक वचन देता हूँ कि मैं अपने अगले अवतार में ये जो पैरों तले कुचले आपके पंख है
इनको अपने मस्तक पर धारण करूँगा ।
मोर प्रभु श्री राम से कहने लगा की हे प्रभु आपने मुझे
हृदय से लगाया , मैं भी एक वादा करता हूँ कि
मेरी आने वाली पीढ़ी वर्ष में एक बार अपने सम्पूर्ण पंखो का त्याग करेगी ।
आपने देखा होगा कि मोर साल में एक बार अपने सारे पंख त्याग
देता है ।
श्री राम जी अपने अगले अवतार में जब श्री कृष्ण के रूप में
अवतरित हुए तो मोर को दिया अपना वचन निभाया और मोर पंख को अपने सर पर धारण किया
।
इसी कारण श्री कृष्ण ने मोर
पंख को अपने सर पर धारण किया हुआ है ।
इस प्रसंग में कुछ अन्य
कथाएँ भी देखने को मिलती हैं जिनमें मोर पंख धारण करने के कुछ अन्य कारण बताए गए
हैं यथा : ज्योतिषियों के अनुसार श्री कृष्ण की जन्म कुंडली में दोष व्याप्त था
जिसके निवारण के लिए माता यशोदा एवं नन्द बाबा ने उन्हें मोर पंख धारण कराया जो
श्री कृष्ण को सुन्दर लगा और उन्होंने इसे सदैव के लिए अपने मुकुट में धारण कर
लिया l
कुछ लोगों का मानना है कि
श्री कृष्ण की आद्य शक्ति राधा जी जब नृत्य करती थीं तो उनकी पायल के घुंघरुओं की
कर्ण प्रिय ध्वनि से मुग्ध होकर मोर भी उनके साथ नृत्य करने लगते थे इसलिए मोर
राधा जी को प्रिय थे, राधा जी की इसी प्रसन्नता के लिए श्री कृष्ण ने मोर के पंख
को अपने मुकुट में स्थान दिया l
कुछ अन्य लोग बताते हैं कि
मोर पंख में जितने भी रंग व्याप्त हैं वह सभी खुशहाली के प्रतीक हैं इसलिए यह श्री
कृष्ण को प्रिय हैं, वहीँ कुछ विद्वानों का मत है कि मोर आजीवन ब्रम्हचर्य का पालन
करने वाला पवित्र पक्षी है वह कभी मादा पक्षी के साथ संसर्ग नहीं करता, मयूरी उसके
नेत्रों से गिरे अश्रुओं का पान करके ही गर्भ धारण करती है अत: पवित्रता को श्री
कृष्ण ने अपने मुकुट में धारण किया l
वास्तु शास्त्रियों की
मानें तो मोर पंख से अनेक वास्तु दोषों का भी निवारण होता है l
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