हमारी चारधाम यात्रा - केदारनाथ (भाग - दो)
जून 17, 2012 को गौरीकुंड से मध्यान्ह 12 .30 बजे पैदल मार्ग द्वारा प्रस्थान कर हम रात्रि में लगभग 9 बजे केदारनाथ पंहुचे, मार्ग की चढ़ाई कठिन थी किन्तु प्रकृति के नैसर्गिक सौन्दर्य एवं श्री केदारनाथ की कृपा से हमें कोई परेशानी नहीं हुई कुछ साथियों को यद्यपि थकान अवश्य महसूस हुई किन्तु सभी सकुशल अपने गंतव्य पर पंहुचे l लगभग एक किलोमीटर पूर्व से जैसे ही श्री केदार मंदिर के शिखर की रौशनी दिखाई दी सभी के मुख मंडल पर प्रसन्नता की लहर सी दौड़ गई l केदारनाथ में जयपुर क्षेत्र के पंडितजी द्वारा संचालित "जयपुर हॉउस" में हमारे रात्रि विश्राम की व्यवस्था थी, मंदिर दर्शन बंद हो जाने के कारण हम रात्रि कालीन दर्शन नहीं कर पाए l जयपुर हाउस में हमने पहले खाना खाया, कई दिनों के बाद यंहा घर जैसा खाना खाकर बहुत अच्छा लगा l रात्रि में मन्दाकिनी नदी के बहते जल की तेज़ किन्तु संगीतमयी आवाज़ ने निद्रा में विघ्न तो डाला किन्तु थकान के कारण सब को कब नींद आ गई पता ही नहीं चला,यंहा ठण्ड के कारण हमें रजाइयां ओढ़नी पड़ी l
प्रात: 5 बजे जब सभी साथी सो रहे थे मैं अपनी पत्नी एवं मित्र श्री मुरली मनोहर जोशी तथा उनकी पत्नी के साथ प्रात:कालीन दर्शन के लिए केदारनाथ मंदिर पंहुचे, किन्तु इतनी जल्दी भी दर्शनों के लिए यात्रियों की लम्बी कतार देख कर दंग रह गए, विशेष व्यवस्था के अंतर्गत मंदिर में प्रवेश किया और दर्शन कर बाहर आये, दर्शन कर मन को जो शांति मिली वह अनिर्वचनीय है l मंदिर के चारों ओर बर्फ के पहाड़ देख कर हर कोई मुग्ध हो जाता है l कुछ देर प्रकृति के इन अलौकिक दृश्यों को निहार कर वापस होटल आये और बाकी साथियों को उठा कर सबके साथ चाय पी I
पानी अत्यधिक ठंडा होने से सभी के लिए स्नान हेतु गर्म पानी मंगवाया गया, यंहा गर्म पानी की एक बालटी पांच से दस रुपये में मिलती है,यद्यपि हमें इसके लिए पृथक से कोई पैसा नहीं देना पड़ा I स्नान कर हम सभी लोग दर्शन के लिए निकले, श्री केदारनाथ जोतिर्लिंग की विधि पूर्वक पूजा कराने हेतु पंडित जी हमारे साथ गए, मंदिर के सामने पूजा सामग्री की अनेक दुकानें लगी हैं जंहा सौ रुपये से एक हज़ार तक की पूजा थाली मिलती है, पूजा की थालियाँ लेकर हम मंदिर में प्रवेश हेतु यात्रियों की कतार में लगे जो बहुत अधिक लम्बी तो नही थी फिर भी पंक्ति में लगभग तीन सौ व्यक्ति हम से आगे थे, इस समय यंहा पैसे देकर पूजा करने की व्यवस्था नहीं होती इस लिए सभी को पंक्ति में ही लग कर प्रवेश करना होता है I
केदारनाथ मंदिर -
समुद्र तल से 3582 मीटर की ऊंचाई पर हिमालय पर्वत श्रृंखला के मध्य स्थित आशुतोष भगवान श्री केदारनाथ का यह मंदिर अति प्राचीन है, कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण पांडु पुत्र पांडवों ने करवाया था किन्तु वह मूल मंदिर नष्ट हो गया था, वर्तमान मंदिर का निर्माण कालांतर में आठवीं शताब्दी में आदिगुरू शंकराचार्य ने करवाया था जिन्होंने यंहा स्वयं दीर्घ काल तक तपस्या एवं साधना की थी I बाद में इसका जीर्णोद्धार भी समय समय पर हुआ है I मंदिर का निर्माण पांडव शैली में हुआ है तथा यह पूरी तरह बड़े पत्थरों से निर्मित है, मंदिर परिसर में प्रवेश द्वार के सामने श्री केदारनाथ की ओर मुखातिब शिव जी की सवारी के रूप में पाषाण निर्मित बड़ा नंदी बैल एक बड़े चबूतरे पर विराजित है, गर्भ गृह में दीपक एवं धूप जलाना वर्जित है इसलिए अन्दर श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की पूजा के बाद यात्री इसी चबूतरे पर दीप जला कर श्री केदारनाथ की आरती करते हैं तथा यंही पर धूपबत्ती आदि जलाते हैं i मुख्य मंदिर के चारों ओर प्रदक्षिणा मार्ग बना हुआ है, मंदिर की दाहिनी ओर ईशानेश महादेव का मंदिर है जो ईशान कोण में बना हुआ है, कहा जाता है कि पांडवों ने मंदिर निर्माण से पूर्व भगवान शिव की यंही पर पूजा की थी l गर्भ गृह के ऊपर विशाल शिखर बना हुआ है जिस पर स्वर्ण कलश लगे हुए हैं यह शिखर स्वयं में आकर्षण का केंद्र है i केदारनाथ का यह मंदिर हिम आच्छादित हिमालय पर्वतों से घिरा हुआ है l इस मंदिर की एक विशेषता यह भी है कि अथाह हिमराशि से आच्छादित हिमालय के शिखरों एवं ग्लेशियरों के दर्शन जितने समीप से यंहा होते हैं उतने कंही और से नंही होते l अद्भुत हिम सौंदर्य एवं हरियाली से भरी घाटी के बीच यात्री या पर्यटक स्वयं ही मंत्रमुग्ध एवं रोमांचित हो जाता है l
मंदिर के अन्दर दो मंडप हैं बाहरी मंडप में चारों ओर की दीवारों पर पांडवों सहित द्रोपदी एवं श्री कृष्ण कि बड़ी प्रतिमाएं उत्कीर्ण की हुई हैं, मध्य में एक प्लेटफोर्म पर धातु निर्मित शिव वाहन नंदी की प्रतिमा स्थित है तथा उसके साथ ही शिवजी के प्रमुख अंगरक्षक एवं प्रमुख सुरक्षा प्रहरी वीरभद्र की प्रतिमा स्थित है,
दूसरे मंडप जो गर्भ गृह है के प्रवेश द्वार की दोनों दिशाओं में देवी पार्वती एवं श्री गणेशजी के छोटे छोटे मंदिर बने हुए हैं,गर्भ गृह के शिखर (गुम्बद) के ठीक मध्य में विशाल पाषाण शिला रूप में स्वयंभू ज्योतिर्लिंग श्री केदारनाथ विराजमान हैं, ज्योतिर्लिंग के चारों ओर रेलिंग लगी हुई है तथा सामने लक्ष्मी जा का मंदिर है l इसी गर्भ गृह में अखंड ज्योति स्तम्भ भी बना हुआ है l श्री केदारनाथ का यह शिला स्वरुप पर्वत शिखर अथवा पिरामिड की आकृति में है तथा इतना विशाल है कि इसे बांहों में नहीं लिया जा सकता l दर्शनार्थी श्री केदारनाथ की पूजा अर्चना कर ज्योतिर्लिंग का स्पर्श कर स्वयं को धन्य महसूस करते हैं कुछ लोग इसका आलिंगन करने का भी प्रयास करते हैं l स्पर्श करने पर इस शिला स्वरूप में गहन शीतलता का अनुभव होता है l श्रद्धालुओं की संख्या को दृष्टिगत रखते हुए गर्भ गृह बहुत छोटा है l गर्भगृह में प्रवेश एवं निकास के लिए एक ही छोटा द्वार है जिससे दर्शनार्थियों को परेशानी का सामना करना पड़ता है , मंदिर से बाहर निकलने के लिए बाहरी मंडप की बाईं ओर एक द्वार खुला है जिसे वी आई पी प्रवेश द्वार के लिए भी उपयोग किया जाता है l
पौराणिक मान्यताएं -
श्री केदारनाथ के सम्बन्ध में शिवपुराण, स्कन्दपुराण एवं अन्य पौराणिक ग्रंथों में अनेक आख्यान उल्लिखित हैं l कुछ मान्यताएं आज के वैज्ञानिक युग में तार्किक दृष्टि से अविश्वसनीय सी लगती हैं किन्तु युगों पूर्व विरचित पुरानों को चनौती नहीं दी जा सकती l इन कथाओं में अन्तर्निहित तथ्यों पर विश्वास न किये जाने का कोई कारण भी नहीं है,धार्मिक मान्यताओं को तर्क की दृष्टि से देखा जाना हमारी आस्थाओं को विद्रूपित करने के अमर्यादित प्रयास के अतिरिक्त और कुछ नहीं है l एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान विष्णु की शिव आराधना करने की इच्छा हुई तो उन्होंने नर एवं नारायण के रूप में अंशावतार लिया तथा बदरीवन (बद्रिकाश्रम) में भगवान शिव का पार्थिव लिंग निर्मित कर शिवजी से उसमें विराजमान होने की प्रार्थना की, शिव जी ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर पार्थिव लिंग में निवास किया l नर एवं नारायण की दीर्घकालीन आराधना एवं तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी उनके समक्ष प्रत्यक्ष प्रकट हुए तथा वरदान मांगने को कहा, नर -नारायण ने शिवजी से प्रार्थना की - यदि आप हमारी तपस्या से प्रसन्न हैं तो श्री केदारखंड में ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थाई निवास करने का वरदान प्रदान करें ताकि आपके दर्शन एवं आपकी पूजा कर पृथ्वी वासी सांसारिक बन्धनों से मुक्त होकर भगवद भक्ति से शरणागति प्राप्त कर सकें l शिवजी ने जन कल्याण की इस भावना से प्रभावित होकर नर -नारायण को तथास्तु कह कर ऐसा ही वरदान प्रदान किया और श्री केदारखंड में ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट होकर वंहा स्थाई निवास किया तथा वंहा वे श्री केदारनाथ अथवा केदारेश्वर कहलाये, कहा जाता है तब से भगवान शिव केदारनाथ में निवास कर रहे हैं और अपने भक्तों को अभीष्ट फल प्रदान कर रहे हैं l यही नर-नारायण श्री बद्रीनाथ धाम में हिम श्रिंग के रूप में अवस्थित है तथा बद्रीनाथ मंदिर के गर्भ गृह में इनके मूर्ती विग्रहों की पूजा की जाती है l
माना जाता है की एक बार देवी पार्वती ने भी भगवान शिव से जन कल्याण हेतु केदारखंड में निवास करने की प्रार्थना की थी और शिवजी ने प्रार्थना स्वीकार कर श्री केदारखंड में ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए थे l सतयुग में भक्त उपमन्यु ने भी यंहा पर शिव जी की आराधना एवं तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया था l युगांतर में द्वापर युग में महर्षी उपमन्यु ने ही भगवान श्री कृष्ण को शिव मन्त्र का उपदेश दिया l
एक अन्य मान्यता जो श्री केदारनाथ के सन्दर्भ में ज्यादा प्रचलित है,के अनुसार महाभारत के युद्ध के पश्चात पांडवों ने अपने भाई - बंधुओं की हत्या के पाप से मुक्ति का मार्ग भगवान श्री विष्णु एवं ब्रम्हा जी से पूछा तो उन्होंने पांडवों को शिवजी के पास जाने का परामर्श देते हुए कहा देवाधिदेव महादेव ही उन्हें पापों सी मुक्ति दिला सकते है अत: उन्हें शिव जी के पास जाना चाहिए, पांडव जब काशी में भगवान शिव के दर्शनार्थ गए तो शिव जी काशी से गुप्तकाशी चले गये, शिव महाभारत युद्ध के कारण पांडवों से कुपित थे और उन्हें दर्शन देना नहीं चाहते थे l पांडव जब शिव जी को ढूंढते हुए गुप्तकाशी पहुंचे तो शिवजी केदारखंड चले गए जंहा उन्होंने बैल का रूप धारण कर स्वयं को पशुओं के झुण्ड में छुपा लिया, देवर्षि नारद को जब इसका पता चला तो उन्होंने भीम को परामर्श दिया कि वह केदारखंड में दोनों पर्वतों पर अपने पांव फैला कर खड़ा हो जाये, बाकी सभी पशु उसके पांवों के नीचे से निकल जायेंगे किन्तु शिवजी ऐसा नहीं करेंगे, भीम ने ऐसा ही किया l देवर्षि नारद की युक्ति काम कर गई शिव जी के अतिरिक्त सभी पशु भीम के पांवों के नीचे से निकल कर अपने मार्ग पर चले गए किन्तु बैल रूपी शिव जी नहीं निकले, इस प्रकार पांडवों ने उन्हें पहचान लिया और भीम ने दौड़ते हुए उन्हें कस कर पकड़ लिया, शिव जी ने स्वयं को मुक्त कराने के प्रयास में स्वयं को धरती में समाहित कर लिया किन्तु उनकी पीठ का हिस्सा ऊपर ही रह गया, बाद में पांडवों की शिव भक्ति से प्रसन्न होकर शिव जी ने उन्हें प्रत्यक्ष दर्शन दिए तथा उन्हें उनके पापों से मुक्ति प्रदान की l पांडवों की प्रार्थना पर भगवान आशुतोष शिव इस स्थान पर ज्योतिर्लिंग रूप में विराजमान हुए, बाद में पांडवों ने यंहा पर मंदिर का निर्माण करवाया तथा यंही से स्वर्ग के लिए प्रयाण किया,कहा जाता है कि ज्येष्ठ पांडव धर्मराज युधिष्ठिर ने ही सशरीर स्वर्गारोहिणी के मार्ग से स्वर्ग में प्रवेश किया था अन्य चारों भाई हिमालय के उत्तंग शिखरों में ही कंही विलीन हो गए थे l स्वर्गारोहिणी का वह स्थान आज भी हिमालय के पर्वतों के मध्य स्थित है तथा आंशिक रूप से दिखाई देता है l
श्रद्धा की परम्पराएँ -
केदारनाथ मंदिर में मैंने एक विशेष परंपरा देखी और उसकी तथ्यात्मक जानकारी प्राप्त की, मान्यता है कि यंहा आने वाले श्रद्धालु पिरामिड आकार की शिला जो कि श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजित है, पर घृत (घी) का लेपन करते हैं अर्थात शिव जी की घी से मालिश करते हैं, स्थानीय पंडित जन तो इस पर कोई विशेष प्रकाश नहीं डाल सके किन्तु जयपुर आकर मैंने कुछ संदर्भित ग्रंथों में इसका रहस्य तलाश किया तो जानकारी मिली कि भीम एवं शिव जी के मध्य वंहा पर गदा युद्ध भी हुआ था जिससे भीम को बड़ी आत्मग्लानी का अनुभव हुआ और उसने क्षमा प्रार्थना सहित भगवान आशुतोष के शरीर के चोटिल अंगों पर घी मर्दन कर उनकी शारीरिक पीड़ा समाप्त करने का प्रयास किया था, इसीलिए श्रद्धालु यात्री भी इस ज्योतिर्लिंग पर घी से मालिश कर उनके कष्ट कम करने का प्रयास करते हैं, एक अन्य पुस्तक में इस सन्दर्भ में संकेत मिलता है कि भीम द्वारा भगवान शिव को पकड़ने के बाद जब वे धरती में समाहित हुए तब उनके शरीर को कष्ट हुआ था जिससे भीम अपराध बोध से ग्रसित हुआ और उसने घी मर्दन द्वारा उनका कष्ट कम करने का उपक्रम किया था l मंदिर के आस पास दुकानों से मिलने वाली पूजन सामग्री में घी भी मिलता है,श्रद्धालु अपनी सामर्थ्य के अनुसार घी खरीदते हैं और इस परंपरा का निर्वहन कर स्वयं को धन्य मानते हैं l हम सभी साथियों ने भी यह पुण्य कार्य किया था l किन्तु अब श्रद्धालु विशेष कर महिलाएं न केवल श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग पर घी लगाती हैं बल्कि मंदिर के द्वारों,सीढ़ियों,वंहा अवस्थित एवं पूजित सभी अन्य देवताओं के भी घी लगाती देखी जा सकती है, इस परंपरा के निर्वाह से केदारनाथ मंदिर की सभी दीवारें और आँगन घी से इतने चिकने हो जाते हैं कि आप जंहा भी हाथ रखें या आँगन में पांव रखे सब घी से चिकने हो जाते हैं यंहा तक कि आपके वस्त्र भी l
एक अन्य परंपरा जो देखी गई उसके अनुसार सभी दर्शनार्थी इस विशाल केदार ज्योतिर्लिंग शिला का दोनों बाँहों से आलिंगन करते हैं, जिसका तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार भीम ने आशुतोष शिव को अपने दोनों हाथों से पकड़ा था और और अपने पापों से मुक्ति पाई थी उसी प्रकार श्रद्धालु भी शिव को अपनी बाँहों में पकड़ कर मुक्ति प्राप्त करने का प्रयास करते हैं l
श्री केदारनाथ के अतिरिक्त चार अन्य स्थानों पर भी केदारनाथ के अन्य अंगों के दर्शन किये जाते हैं एवं पूजा की जाती है इनमें क्रमश: मद्महेश्वर में नाभि,तुंगनाथ में भुजा एवं ह्रदय, रुद्रनाथ में मुंह ,एवं कल्पेश्वर में जटा की पूजा की जाती है , इन स्थानों पर भी पांडवों ने शिव भक्ति एवं पूजा की थी तथा बाद में यंहा मंदिरों का निर्माण करवाया था l केदारनाथ धाम सहित ये चारों स्थान संयुक्त रूप से पञ्च केदार कहलाते हैं l कुछ ग्रंथों में ऐसा भी उल्लेख मिलता है कि आशुतोष भगवान शिव का शरीर काशी में एवं मुखारविंद नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर में पूजित है l
केदारनाथ मंदिर के समीप पांच कुण्ड भी दर्शनीय हैं जिनका अपना पृथक महत्त्व है l ब्रम्ह कुण्ड केदार मंदिर परिसर में, मंदिर के सामने मुख्य मार्ग पर उदक कुण्ड जिसके बारे में कहा जाता है कि इस कुण्ड का जल पीने वाले की किसी दुर्घटना में मृत्यु नहीं होती, हंस कुण्ड एवं भैरव घाटी मार्ग में रेतस कुण्ड है जो दीवारों एवं छत से ढका हुआ है, इस कुण्ड में तीन बार “बम बम बम ” का नाद करने से पानी में स्वत: ही बुलबुले उत्पन्न होते हैं l केदारनाथ से पैदल मार्ग द्वारा चोराबाली (गांधी सरोवर ) तथा वासुकी ताल जंहा से ब्रम्ह कमल के पुष्प पूजा हेतु लाये जाते हैं, जाया जा सकता है l
आदि गुरु शंकराचार्य का समाधि स्थल –
केदारनाथ मंदिर के पीछे कुछ ही दूरी पर मन्दाकिनी नदी के किनारे पर आदि गुरु शंकराचार्य का स्थान है जंहा उन्होंने तपस्या की थी l आदि शंकराचार्य ने भारत की चारों दिशाओं में धर्म के पुनर्स्थापन एवं प्रचार हेतु चार शंकराचार्य पीठों की स्थापना की थी जो आज भी विद्यमान हैं l बाद में केदारखंड में जाकर उन्होंने पांडवों द्वारा निर्मित केदारनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था , यंही पर तपस्या कर आदिगुरू शंकराचार्य ने मात्र बत्तीस वर्ष की आयु में योगसमाधि ले ली थी l इस स्थान पर उनकी समाधि के अतिरिक्त उनके द्वारा पूजित एवं आराधित स्फटिक शिवलिंग भी विराजमान है l यह स्थान भी अध्यात्मिक दृष्टि से दर्शनीय एवं वन्दनीय है l
भैरव मंदिर -
केदारनाथ मंदिर से भैरव घाटी होते हुए भैरव मंदिर जाया जा सकता है जंहा एक खुली चट्टान पर शिव जी के प्रमुख गण भैरव जी का मंदिर है l
केदारनाथ की शीतकालीन पूजा –
दीपावली के बाद छै माह के लिए केदारनाथ मंदिर के कपाट यात्रियों के लिए बंद हो जाते हैं जो पुन: अप्रैल माह में खुलते हैं , इस अवधि में यह पूरा क्षेत्र बर्फ में ढक जाता है और यंहा कोई नहीं रहता l स्थानीय व्यक्तियों के अनुसार यंहा के बाज़ार एवं मकानों की एक मंजिल तक चारों ओर बर्फ छा जाती है , सभी लोग नीचे गौरीकुंड एवं आसपास के अपने अन्य गांवों में चले जाते हैं l इन छै माह में श्री केदारनाथ की पूजा यंहां से 62 किलोमीटर पूर्व ऊखीमठ में होती है l कपाट बंद होने पर श्री केदारनाथ की चलित रजत मूर्ती केदार्नाथ्द्हम से एक सुसज्जित पालकी में पारंपरिक तरीके एवं विधि विधान पूर्वक लाई जाती है तथा इस अवधि में इसी मूर्ती की केदार स्वरुप में पूजा अर्चना की जाती है l कपाट खुलने से पूर्व यही मूर्ती वापस केदारनाथ धाम ले जी जाती है l
"जय श्री केदारनाथ " क्रमश: -
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