Thursday, 2 August 2012

हमारी चारधाम यात्रा - गौरीकुण्ड





हमारी चारधाम यात्रा - गौरीकुण्ड 

हमारी चारधाम यात्रा के अंतर्गत 17 जून 2012 को हम प्रात: 7 बजे गुप्तकाशी से रवाना होकर 9 बजे गौरीकुंड पंहुचे जिसे केदारनाथ धाम का प्रवेश द्वार कहा जाता है l गौरीकुंड से ही केदारनाथ के लिए 14 किलोमीटर का पै
दल मार्ग है,यदि हेलीकाप्टर से जाना हो तो यंहा से लगभग 10 किलोमीटर पहले फाटा से जाया जा सकता है,अन्यथा यंहा से पालकी,खच्चर,या कंडी आदि से जाया जा सकता है l पैदल जाने वाले यात्रियों की संख्या भी कम नहीं होती अधिकांश लोग जो पहाड़ों पर बनी घाटियों से पैदल चढ़ कर जा सकते हैं, पैदल मार्ग ही चुनते हैं l केदारनाथ जाने के लिए यंहा तक यातायात के लिए सड़क मार्ग बना हुआ है l

गौरीकुण्ड -

गौरीकुंड हिमालय के पर्वतों की तलहटी में बसा उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले का का एक प्रमुख स्थान है जो समुद्रतल से 1982 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है,इसके चारों ओर सघन हरियाली छाई हुई है तथा प्रकृति ने नदी एवं जल के स्रोतों से इसका श्रिंगार किया है l यथानाम गौरीकुण्ड का सम्बन्ध गौरी अर्थात पार्वती से जुड़ा हुआ है l

मान्यताएं - गौरीकुंड के सम्बन्ध में दो प्रमुख मान्यताएं प्रचलित हैं, पहली मान्यता के अनुसार यह वो स्थान है जंहा पार्वतीजी ने भगवान् शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए योग साधना एवं लम्बी कष्टसाध्य तपस्या की थी जिससे प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार करने की स्वीकृति प्रदान की थी और यंहा से कुछ ही दूरी पर स्थित त्रियुगीनारायण स्थान पर उनका विवाह संपन्न हुआ था l

दूसरी मान्यता के अनुसार यंही पर वह स्थान भी है जंहा श्री गणेश जी का जन्म हुआ था, गणेश प्राकट्य या जन्म के विषय में पुराणों में विभिन्न कथाएं हैं किन्तु स्कन्द पुराण के अनुसार एक बार देवी पार्वती ने स्नान से पूर्व अपने शरीर के उबटन से एक बालक की आकृति का निर्माण कर उसमें जीवन का संचार किया तथा अनेक शक्तियां प्रदान की , पार्वती ने इस बालक को आज्ञा प्रदान की कि मेरे स्नान के समय कोई भी व्यक्ति स्नानानगर में प्रवेश नहीं करे जब तक कि मेरी अनुमति न मिले चाहे वह कोई भी मनुष्य या देवता क्यों हो l बालक को ऎसी आज्ञा प्रदान कर उसे स्नानागार के प्रवेश द्वार पर नियुक्त कर दिया l इसी समय भगवान् शिव वंहा आये और अन्दर प्रवेश करना चाहा तो बालक ने प्रतिरोध करते हुए उन्हें देवी पार्वती की आज्ञा से अवगत कराया, शिव जी द्वारा अपना परिचय दिए जाने के उपरांत भी जब उस बालक ने उन्हें अन्दर प्रवेश नहीं करने दिया तो उन्हें क्रोध आया और दोनों के मध्य युद्ध हुआ, देवी पार्वती से प्राप्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए बालक ने शिव जी को जब प्रवेश नहीं करने दिया तो शिव जी ने अपने त्रिशूल से बालक का सिर विच्छेद कर दिया और अन्दर प्रवेश कर गए जब देवी पार्वती को इस घटना की जानकारी मिली तो वह क्रोधित हुई और अपने पुत्र समान बालक कि मृत्यु प् विलाप करने लगी l अन्ततोगत्वा शिव जी ने अपने गणों को आज्ञा प्रदान कर जो भी प्रथम जीवधारी मिले उसका सिर लाने को भेजा l गणों को सर्वप्रथम एक हाथी का बालक मिला और वे उसी का सिर ले आये, शिव जी ने वही सिर बालक के शरीर पर रख उसे पुनर्जीवित कर दिया तथा उसे अपने पुत्र रूप में स्वीकार करते हुए उसे अनेक दिव्य शक्तियां प्रदान की, अन्य देवता गण भी वंहा उपस्थित हुए तथा सभी ने बालक को आशीर्वाद दिया तथा अपनी शक्तियां प्रदान की, इस बालक का नाम गणेश / गजानन रखा गया और किसी भी मांगलिक कार्य अथवा पूजन में सर्व प्रथम इसकी पूजा का विधान स्थापित किया l

गौरीकुण्ड में दोनों ही मान्यताओं से सम्बंधित शिलालेख एवं मंदिर मौजूद हैं l यंहा पर गौरीकुण्ड नामक गर्म जल के कुण्ड बने हुए हैं जो पुरुषों एवं महिलाओं के स्नान के लिए हैं इन कुण्डों की गहराई केवल कमर तक की है, एक गौमुख से इनमें सदैव गर्म जल प्रवाहित होता रहता है, कुण्डों की नियमित सफाई होती है, गौरीकुण्ड के एक कोने पर गौरी मैया का छोटा सा मंदिर बना हुआ है l छोटी सी जगह में कुण्ड के तीन ओर दुकानों के कारण यात्रियों को अनेक प्रकार की अव्यवस्थताओं से गुजरना पड़ता है l

स्नान के लिए बने इन गर्म जल के कुण्डों के समीप ही वह स्थान है जंहा देवी पार्वती ने स्नान किया था तथा प्रथम पूज्य श्री गणेश का प्राकट्य हुआ था, इस स्थान के मध्य में एक छोटा सा जल कुण्ड है तथा तीन ओर की दीवारों पर शिव-पार्वती तथा गणेश आदि की मूर्तियाँ विराजित हैं l इसी स्थान पर यात्रियों से स्थानीय पंडितों द्वारा पूजा - अर्चना कराई जाती है l केदारनाथ धाम की यात्रा पर प्रस्थान से पूर्व यात्री गौरीकुंड में स्नान एवं पूजा आदि करते हैं तथा अपनी यात्रा की निर्विघ्न सम्पन्नता के लिए मनोकामना करते हैं l

यात्रा सीज़न के समय छै माह तक यंहा खूब चल पहल तथा रौनक रहती है , इस अवधि में स्थानीय एवं आस पास के क्षेत्रों के लोग अपने जीवन यापन के लिए अर्थोपार्जन करते हैं जिससे अगले छै माह जब यंहा न तो कोई यात्री होता है न ही कोई व्यवसायिक गतिविधि उनका जीवन निर्वाह होता है l हम लोगों ने भी यंहा पहुँच कर पहले गौरीकुंड के पवित्र गर्म जल में स्नान किया तथा फिर पूजा अर्चना के कार्यों से निवृत्त होकर कुछ नाश्ता कर श्री केदारनाथ के लिए प्रस्थान किया l

क्रमश: - अगले आलेख में श्री केदारनाथ दर्शन

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