Tuesday, 28 August 2012

हमारी चारधाम यात्रा - माणा गाँव







हमारी चारधाम यात्रा - माणा गाँव 

बद्रीनाथ मंदिर एवं अन्य स्थानों के दर्शन कर हमने बद्रीनाथ से मात्र तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित भारत के अंतिम गाँव "माणा गाँव" के लिए प्रस्थान किया l भारत -तिब्बत सीमा पर समुद्र ताल से 3186 मीटर की ऊ
ंचाई पर स्थित भारत का यह अंतिम गाँव है जिसकी आबादी कोई विशेष नहीं है, लगभग दो सौ परिवारों का समूह है l भोटिया अनुसूचित जन जाति के इन लोगों का रोज़गार बद्रीनाथ धाम से ही चलता है,महिलाएं हाथ से ऊन के वस्त्र एवं कालीन आदि तैयार करती हैं और पुरुष आजीविका के अन्य साधनों पर निर्भर हैं l गाँव के ऊपर स्थित सीमा पर तारबंदी हो रखी है तथा भारत तिब्बत संयुक्त सेना तैनात है l माणा गाँव धार्मिक,सांस्कृतिक पौराणिक एवं व्यापारिक दृष्टि से महत्वपूर्ण गाँव है l 1962 के भारत चीन युद्ध से पूर्व इस गाँव के रास्ते से तिब्बत एवं चीन से व्यापारिक गतिविधियाँ संचालित की जाती थी किन्तु अब यह व्यापारिक सम्बन्ध समाप्त हो गए हैं l इस गाँव के बाद नीति घाटी से ही अंतर्राष्ट्रीय सीमा प्रारंभ हो जाती है l

पर्यटकों एवं यात्रियों के लिए मात्र दो चार दुकानें हैं जिनमें चाय बिस्कुट आदि सामान्य वस्तुएं मिलती हैं, गाँव के लोग मेहनती,कर्मठ,बहदुर एवं मृदु भाषी हैं यह लोग यंहा बद्रीनाथ मंदिर के कपाट खुलने पर आते हैं और केवल 6 माह जब तक बद्रीनाथ मंदिर के कपाट खुले रहते हैं यंहा रहते हैं उसके बाद पाण्डुकेश्वर एवं आसपास के गांवों में चले जाते हैं l पहले ये लोग तिब्बत के साथ व्यापार करते थे किन्तु अब नहीं करते l ये लोग अपनी परम्पराओं एवं संस्कृति से गहरे जुड़े हुए हैं l

अंतिम गाँव होने के अतिरिक्त इस गाँव का पौराणिक महत्त्व भी है जिसके कारण जानकारी होने पर प्राय: बद्रीनाथ आने वाले श्रद्धालु यंहा तक भी पंहुचते हैं जिन्हें जानकारी नहीं होती वह यंहा के पौराणिक स्थानों के दर्शनों से वंचित रह जाते हैं l यंहा के लोगों का बद्रीनाथ मंदिर से भी सम्बन्ध है, जैसा कि मैंने अपने पूर्व आलेख बद्रीनाथ यात्रा भाग दो में उल्लेख किया था, बद्रीनाथ मंदिर कपाट बंद होने पर यंहा की कुंवारी कन्याओं द्वारा एक ही दिन में तैयार किये गए घृत कम्बल से भगवान को उन्ही कन्याओं द्वारा ढका जाता है l वाहन से उतरकर लगभग दो किलोमीटर की चढ़ाई चढ़ कर निम्न दर्शनीय स्थानों के दर्शन किये जा सकते हैं :

1. व्यास गुफा -

मान्यता है कि इसी गुफा में महर्षि वेदव्यास ने गणेश जी के माध्यम से महाभारत काव्य की रचना की थी, वेदव्यास जी द्वारा उच्चारित पंक्तियों को गणेश जी ने लिपि बढ किया था , गुफा एक चट्टान के नीचे स्थित है l गुफा में महर्षि वेदव्यास जी की पद्मासनस्थ मूर्ती स्थापित है, गुफा के पुजारी ने बताया कि यंहा से वेद व्यास जी बोलते थे और समीप ही स्थित गणेश गुफा में बैठे गणेश जी उसे लिपिबद्ध करते थे l

2 . गणेश गुफा -

व्यास गुफा के समीप ही गणेश गुफा है जिसमें गणेश जी की मूर्ती स्थापित है, मान्यता है कि वेदव्यास द्वारा विरचित महाभारत काव्य को गणेश जी ने इसी गुफा में बैठकर लिपिबद्ध किया था l

3 . व्यास पोथी -

व्यासगुफा के समीप ही एक छोटे से कक्ष में पाषाण शिला रखी हुई है,कहा जाता है कि यह वेदों की प्रतीक शिला है, शिला पर वैदिक ऋचाएं अंकित हुई सी दिखाई देती हैं l ऐसी भी मान्यता है कि इसी स्थान पर वेद को चार भागों में विभक्त किया गया था l

4 . भीम पुल -

माणा गाँव के निकट ही सरस्वती नदी के ऊपर एक पुल बना हुआ है जिसके सम्बन्ध में मान्यता है कि जब पांडव इस क्षेत्र से स्वर्गारोहण के लिए जा रहे थे तो द्रौपदी से सरस्वती नदी पार नहीं की जा सकी थी, इसलिए महाबली भीम ने पर्वत की एक विशाल चट्टान को नदी के दोनों पाटों पर रख कर पुल का निर्माण किया था ताकि द्रौपदी एवं भीम के अन्य भाई सरस्वती नदी को सुगमता पूर्वक पार कर सकें l नदी पर यह पुल स्पष्ट दिखाई देता है l

5 . सरस्वती नदी का उद्गम स्थल -

सरस्वती नदी माणा गाँव से तिब्बत मार्ग में पचास किलोमीटर उत्तर की ओर स्थित देविताल से निकलती है l ऎसी पौराणिक मान्यता है कि माणा के निकट महाभारत की रचना करने के लिए वेदव्यास जी को सरस्वती ने आशीर्वाद दिया था, सरस्वती नदी माणा गाँव के नीचे से बहती है और व्यासगुफा को स्पर्श करते हुए समीप ही केशव प्रयाग में अलकनंदा नदी में समाहित हो जाती है l उल्लेखनीय है कि इसके बाद सरस्वती नदी ओझल हो जाती है और फिर केवल तीर्थराज प्रयाग में गंगा एवं यमुना के साथ संगम करती है किन्तु त्रिवेणी के इस संगम में भी सरस्वती नदी अदृश्य ही रहती है l केशव प्रयाग के बाद यह कंहा ओझल हो जाती है और इलाहाबाद में (प्रयाग) में किस मार्ग से पंहुचती है यह अभी तक रहस्य ही बना हुआ है यद्यपि इस सन्दर्भ में अनेक शोध हुए हैं और अभी भी हो रहे हैं किन्तु यह रहस्य ही बना हुआ है l इस दृष्टि से यह स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है,क्योंकि यदि किसी को सरस्वती के दर्शन करने हों तो यंहा के अतिरिक्त कंही अन्य स्थान नहीं है l यंहा सरस्वती नदी का प्रवाह इतना तीव्र है कि पर्यटकों को भी उससे भय लगता है, जल का वेग और कर्णभेदी शोर दर्शनीय है, काफी दूर खड़े होने पर भी उसके वेग एवं गर्जना से हर कोई रोमांचित हो जाता है l पानी कि फुहारें वंहा खड़े रहने वालों को भिगो देती हैं l साथ ही पानी की ठंडक अच्छी सर्दी का अहसास कराती है, कहा जाता है कि यह पानी इसी वेग से कैलाश मानसरोवर से आ रहा है l इस सन्दर्भ में यह भी कहा जाता है कि पूर्व में कैलाश मानसरोवर इसी मार्ग से जाया जाता था l

माणा गाँव से पैदल मार्ग द्वारा नीति घाटी होते हुए वसुधारा, सतोपंथ,एवं स्वर्गारोहण शिखर जाया जा सकता है,इन स्थानों के विषय में भी मैंने स्थानीय लोगों से जानकारी प्राप्त की किन्तु विषय विस्तार के कारण मैं उसे यंहा उल्लिखित नहीं कर रहा हूँ,यद्यपि इस रोचक जानकारी को फिर कभी प्रस्तुत करने का प्रयास करूंगा l

जय श्री कृष्ण

क्रमश: - अगले आलेख में चारधाम यात्रा का समापन l

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