हमारी चारधाम यात्रा - केदारनाथ ( भाग - एक )
इस यात्रा का वृत्तांत बड़ा होने के कारण सुविधा की दृष्टि से इसे मैं दो भागों में प्रस्तुत कर रहा हूँ ,प्रथम भाग में मार्ग का विवरण आदि एवं दूसरे भाग में केदारनाथ धाम, मान्यताएं , मंदिर - दर्श
इस यात्रा का वृत्तांत बड़ा होने के कारण सुविधा की दृष्टि से इसे मैं दो भागों में प्रस्तुत कर रहा हूँ ,प्रथम भाग में मार्ग का विवरण आदि एवं दूसरे भाग में केदारनाथ धाम, मान्यताएं , मंदिर - दर्श
न, एवं अन्य दर्शनीय स्थानों का विवरण होगा l हमारी चारधाम यात्रा के तीसरे चरण में हमें श्री केदारनाथ धाम जाना था, केदारनाथ जाने के लिए हम गौरीकुंड किस मार्ग और कैसे पंहुचे इसका उल्लेख मैं अपने पूर्व आलेख में कर चूका हूँ l 17 जून 2012 को मध्यान्ह लगभग 12 .30 बजे हम गौरीकुंड से केदारनाथ के लिए निकले, चार पालकियां तथा सामान एवं बच्चों के लिए तीन कंडी की गई जो स्थानीय विकास मंडल के काउंटर पर पूर्व भुगतान देकर की जाती हैं, इनकी दरें यात्री के वज़न के अनुसार निर्धारित हैं जो प्रतिवर्ष बदलती रहती हैं, पालकी जिसे चार मजदूर कन्धों पर उठा का चलते हैं 5200 रुपये से 7000 रुपये तक और कंडी 1000 से 1400 रुपये तक मिल जाती है जबकि घोड़े (खच्चर ) 1500 से 2500 तक उपलब्ध हो जाते हैं, यह दरें गौरीकुंड से केदारनाथ एवं वंहा से वापस के लिए मान्य हैं I गौरीकुंड से केदारनाथ का 14 किलोमीटर का पैदल मार्ग तय करने में पालकी को लगभग चार घंटे तथा खच्चर को तीन घंटे का समय लगता है जबकि कंडी वाले लगभग यात्रियों के साथ चलते हैं I निर्धारित दरों के अतिरिक्त ये मजदूर रास्ते में यात्रियों से खाने एवं चाय आदि का अतिरिक्त खर्चा भी करा लेते हैं जो मानवीयता के आधार पर है I चढ़ाई नहीं होने से वापसी में इन्हें समय कुछ कम लगता है I समूह के अन्य सभी सदस्यों ने पैदल जाने का निश्चय किया I
केदारनाथ का पैदल मार्ग -
गौरीकुंड से केदारनाथ का 14 किलोमीटर का मार्ग पहाड़ी मार्ग है यमुनोत्री की तरह यंहा भी एक तरफ ऊंचे ऊंचे पहाड़ हैं और दूसरी तरफ गहरी खाइयाँ जिनकी गहराई जैसे जैसे यात्री ऊपर चढ़ते हैं बढ़ती जाती है,बीच में पगडण्डीनुमा रास्ता है जो पत्थरों से बना हुआ है यद्यपि इसकी चोड़ाई यमुनोत्री मार्ग की अपेक्षा अधिक है I रास्ते में जगह जगह अस्थाई ढाबे बने हुए हैं जो स्थानीय गढ़वाली लोगों द्वारा संचालित होते हैं, इनमें अच्छे खाने की अपेक्षा नहीं की जा सकती, ब्रांडेड वस्तुएं ही उपयोग की जानी चाहियें I पूरे मार्ग में अलकनंदा नदी एवं हरियाली से आच्छादित पहाड़ साथ रहते हैं , पहाड़ों की चोटियों पर बर्फ के ग्लेशियर यात्रियों के आकर्षण का केंद्र बने रहते हैं, पहाड़ों से निकल कर नीचे आने वाले अनेक झरने मन को हर्षित करते हैं, पूरा मार्ग रमणीक तो है किन्तु थका देने वाला भी है I गौरीकुंड से सात किलोमीटर की दूरी पर रामबाड़ा नाम का स्थान है जंहा यदि यात्री चाहें तो रात्रि विश्राम की व्यवस्था उपलब्ध हो सकती है I
सावधानियां जो आवश्यक हैं -
स्वांस की बीमारी से पीड़ितों एवं ह्रदय रोगियों को पैदल जाने का दुस्साहस नहीं करना चाहिए, चढ़ाई में परेशानी हो सकती है तथा ऑक्सीजन की कमी भी परेशान कर सकती है, ऐसे लोगों को गौरीकुंड से छोटे ऑक्सीजन के सिलेंडर खरीद कर साथ रखने चाहियें जो वंहा 250 -300 रुपये में आसानी से उपलब्ध होते हैं, कुछ लोग कपूर भी साथ रखते हैं जिसे सूंघने से कुछ राहत मिलती है I पैदल जाने वाले यात्रियों को सुविधा के लिए गौरीकुंड से ही छड़ियाँ (स्टिक्स) ले लेनी चाहिए चढ़ाई वाले मार्ग में यह चढ़ने एवं उतरने में सहायक होती हैं, जून से अगस्त में यंहा बरसात होती रहती है जो परेशानी का कारण बन सकती है इसके लिए हलके रैन कोट्स साथ रखने चाहियें जिन्हें आवश्यकता पड़ने पर उपयोग में लिया जा सकता है वैसे मार्ग में भी ऐसे हलके बरसाती गाउन उपलब्ध हो जाते हैं I किसी भी तरह की बीमारी से ग्रसित लोगों को अपनी दवाइयां अवश्य साथ रखनी चाहिए क्योंकि आप जो दवा लेते हैं वह आवश्यक नहीं कि वंहा के मेडिकल स्टोर्स में उपलब्ध हो जाये I डायबिटीज़ के रोगियों को भी अपनी दवा के अतिरिक्त खाने पीने की अन्य आवश्यक सामग्री अपने साथ अवश्य रखनी चाहिए I इस मार्ग में सुविधा जनक वस्त्र पहनने से किसी संभावित परेशानी से बचा जा सकता है I पांव में भी सुविधाजनक शूज़ या सेंडल ही पहनने चाहियें जो पांव को काटे नहीं,महिलाओं को ऊंची हील की चप्पल या सेंडल भूल कर भी नहीं पहननी चाहिए, पांव फिसलने या मुड़ने की संभावना रहती है I अपने साथ कम से कम वजन रखने से आपको थकान कम होगी, वैसे वजनदार सामान के लिए कंडी (पिट्ठू) हायर कर लेना आपके लिए सुविधाजनक होगा I यद्यपि पालकी या कंडी वाले मजदूर ईमानदार होते हैं फिर भी मूल्यवान वस्तुओं के प्रति सावधानी रखनी चाहिए I
हमने यद्यपि बच्चों के लिए पालकी या कंडी हायर की थी किन्तु बच्चे उनमें बैठने को तैयार ही नहीं हुए इसलिए हम लोग जो पैदल जा रहे थे उन्हें केदारनाथ पहुँचने में लगभग आठ घंटे का समय लग गया जबकि पालकी से जाने वाले साथी चार-पांच घंटे में पहुँच कर हमारी प्रतीक्षा करते रहे, यंहा मोबाइल फोन्स की कनेक्टीविटी बड़ी मुश्किल से ही मिल पाती है इसलिए परस्पर संपर्क भी नहीं हो पाता, ऐसी स्थिति से बचने के लिए जंहा तक संभव हो साथ जाने वाले सभी लोग साथ-साथ चलने का ही प्रयास करें ताकि एक दूसरे के लिए चिंतित न होना पड़े I खच्चर पर जाने वाले लोगों को सावधानीपूर्वक बैठना चाहिए तथा पहाड़ों की नुकीली चट्टानों से स्वयं को बचाते हुए रखना चाहिए, मार्ग में अँधेरे से बचाव के लिए टोर्च भी अवश्य साथ रखनी चाहिए, यद्यपी मार्ग में लाईट लगी हुई हैं किन्तु फिर भी उनके गुल होने या पर्याप्त रोशनी नहीं होने पर टोर्च आपकी मदद करेगी I जो लोग पैदल न जा सकें अथवा जिन्हें जल्दी ही जाकर वापस आना हो उनके लिए हेलीकोप्टर से जाना श्रेष्ठ होगा, यह मात्र 15 से 20 मिनिट में केदारनाथ पहुंचा देता है, यात्रा के सीज़न में हेलीकोप्टर की सुविधा खूब उपलब्ध होती है इसका दोनों तरफ का किराया इस वर्ष लगभग 7 से 8 हजार प्रति व्यक्ति था I किन्तु हेलिकोप्टर से जाने वाले यात्री 14 किलोमीटर मार्ग के प्राकृतिक सौन्दर्य से पूरी तरह वंचित ही रहते हैं I
मौसम -
केदारनाथ में अप्रैल से जून तक मौसम दिन में सुहाना एवं रात्रि में हल्की ठंडक रहती है,इसलिए पहनने के लिए हलके गरम कपडे साथ लेने चाहिए, जून से सितम्बर बरसात रहती है,पहाड़ों से चट्टानें टूट कर गिरने की भी संभावना रहती है जिससे मार्ग अवरुद्ध हो सकते हैं अत: सावधानी आवश्यक है,सितम्बर से नवम्बर में मंदिर के पट बंद होने तक तेज़ सर्दी रहती है,भारी गरम कपडे साथ रखना आवश्यक है l दीपावली पर कपट बंद होने के बाद अप्रैल में वापस खुलने तक पूरा क्षेत्र बर्फ से ढक जाता है, मार्ग भी बर्फ से बंद हो जाते हैं,इस अवधि में यंहा कोई नहीं रहता,दुकानों एवं मकानों की एक से दो मंजिल तक बर्फ में दब जाती हैं l ll जय श्री केदारनाथ ll क्रमश: अगले आलेख में केदारनाथ दर्शन (भाग दो )
केदारनाथ का पैदल मार्ग -
गौरीकुंड से केदारनाथ का 14 किलोमीटर का मार्ग पहाड़ी मार्ग है यमुनोत्री की तरह यंहा भी एक तरफ ऊंचे ऊंचे पहाड़ हैं और दूसरी तरफ गहरी खाइयाँ जिनकी गहराई जैसे जैसे यात्री ऊपर चढ़ते हैं बढ़ती जाती है,बीच में पगडण्डीनुमा रास्ता है जो पत्थरों से बना हुआ है यद्यपि इसकी चोड़ाई यमुनोत्री मार्ग की अपेक्षा अधिक है I रास्ते में जगह जगह अस्थाई ढाबे बने हुए हैं जो स्थानीय गढ़वाली लोगों द्वारा संचालित होते हैं, इनमें अच्छे खाने की अपेक्षा नहीं की जा सकती, ब्रांडेड वस्तुएं ही उपयोग की जानी चाहियें I पूरे मार्ग में अलकनंदा नदी एवं हरियाली से आच्छादित पहाड़ साथ रहते हैं , पहाड़ों की चोटियों पर बर्फ के ग्लेशियर यात्रियों के आकर्षण का केंद्र बने रहते हैं, पहाड़ों से निकल कर नीचे आने वाले अनेक झरने मन को हर्षित करते हैं, पूरा मार्ग रमणीक तो है किन्तु थका देने वाला भी है I गौरीकुंड से सात किलोमीटर की दूरी पर रामबाड़ा नाम का स्थान है जंहा यदि यात्री चाहें तो रात्रि विश्राम की व्यवस्था उपलब्ध हो सकती है I
सावधानियां जो आवश्यक हैं -
स्वांस की बीमारी से पीड़ितों एवं ह्रदय रोगियों को पैदल जाने का दुस्साहस नहीं करना चाहिए, चढ़ाई में परेशानी हो सकती है तथा ऑक्सीजन की कमी भी परेशान कर सकती है, ऐसे लोगों को गौरीकुंड से छोटे ऑक्सीजन के सिलेंडर खरीद कर साथ रखने चाहियें जो वंहा 250 -300 रुपये में आसानी से उपलब्ध होते हैं, कुछ लोग कपूर भी साथ रखते हैं जिसे सूंघने से कुछ राहत मिलती है I पैदल जाने वाले यात्रियों को सुविधा के लिए गौरीकुंड से ही छड़ियाँ (स्टिक्स) ले लेनी चाहिए चढ़ाई वाले मार्ग में यह चढ़ने एवं उतरने में सहायक होती हैं, जून से अगस्त में यंहा बरसात होती रहती है जो परेशानी का कारण बन सकती है इसके लिए हलके रैन कोट्स साथ रखने चाहियें जिन्हें आवश्यकता पड़ने पर उपयोग में लिया जा सकता है वैसे मार्ग में भी ऐसे हलके बरसाती गाउन उपलब्ध हो जाते हैं I किसी भी तरह की बीमारी से ग्रसित लोगों को अपनी दवाइयां अवश्य साथ रखनी चाहिए क्योंकि आप जो दवा लेते हैं वह आवश्यक नहीं कि वंहा के मेडिकल स्टोर्स में उपलब्ध हो जाये I डायबिटीज़ के रोगियों को भी अपनी दवा के अतिरिक्त खाने पीने की अन्य आवश्यक सामग्री अपने साथ अवश्य रखनी चाहिए I इस मार्ग में सुविधा जनक वस्त्र पहनने से किसी संभावित परेशानी से बचा जा सकता है I पांव में भी सुविधाजनक शूज़ या सेंडल ही पहनने चाहियें जो पांव को काटे नहीं,महिलाओं को ऊंची हील की चप्पल या सेंडल भूल कर भी नहीं पहननी चाहिए, पांव फिसलने या मुड़ने की संभावना रहती है I अपने साथ कम से कम वजन रखने से आपको थकान कम होगी, वैसे वजनदार सामान के लिए कंडी (पिट्ठू) हायर कर लेना आपके लिए सुविधाजनक होगा I यद्यपि पालकी या कंडी वाले मजदूर ईमानदार होते हैं फिर भी मूल्यवान वस्तुओं के प्रति सावधानी रखनी चाहिए I
हमने यद्यपि बच्चों के लिए पालकी या कंडी हायर की थी किन्तु बच्चे उनमें बैठने को तैयार ही नहीं हुए इसलिए हम लोग जो पैदल जा रहे थे उन्हें केदारनाथ पहुँचने में लगभग आठ घंटे का समय लग गया जबकि पालकी से जाने वाले साथी चार-पांच घंटे में पहुँच कर हमारी प्रतीक्षा करते रहे, यंहा मोबाइल फोन्स की कनेक्टीविटी बड़ी मुश्किल से ही मिल पाती है इसलिए परस्पर संपर्क भी नहीं हो पाता, ऐसी स्थिति से बचने के लिए जंहा तक संभव हो साथ जाने वाले सभी लोग साथ-साथ चलने का ही प्रयास करें ताकि एक दूसरे के लिए चिंतित न होना पड़े I खच्चर पर जाने वाले लोगों को सावधानीपूर्वक बैठना चाहिए तथा पहाड़ों की नुकीली चट्टानों से स्वयं को बचाते हुए रखना चाहिए, मार्ग में अँधेरे से बचाव के लिए टोर्च भी अवश्य साथ रखनी चाहिए, यद्यपी मार्ग में लाईट लगी हुई हैं किन्तु फिर भी उनके गुल होने या पर्याप्त रोशनी नहीं होने पर टोर्च आपकी मदद करेगी I जो लोग पैदल न जा सकें अथवा जिन्हें जल्दी ही जाकर वापस आना हो उनके लिए हेलीकोप्टर से जाना श्रेष्ठ होगा, यह मात्र 15 से 20 मिनिट में केदारनाथ पहुंचा देता है, यात्रा के सीज़न में हेलीकोप्टर की सुविधा खूब उपलब्ध होती है इसका दोनों तरफ का किराया इस वर्ष लगभग 7 से 8 हजार प्रति व्यक्ति था I किन्तु हेलिकोप्टर से जाने वाले यात्री 14 किलोमीटर मार्ग के प्राकृतिक सौन्दर्य से पूरी तरह वंचित ही रहते हैं I
मौसम -
केदारनाथ में अप्रैल से जून तक मौसम दिन में सुहाना एवं रात्रि में हल्की ठंडक रहती है,इसलिए पहनने के लिए हलके गरम कपडे साथ लेने चाहिए, जून से सितम्बर बरसात रहती है,पहाड़ों से चट्टानें टूट कर गिरने की भी संभावना रहती है जिससे मार्ग अवरुद्ध हो सकते हैं अत: सावधानी आवश्यक है,सितम्बर से नवम्बर में मंदिर के पट बंद होने तक तेज़ सर्दी रहती है,भारी गरम कपडे साथ रखना आवश्यक है l दीपावली पर कपट बंद होने के बाद अप्रैल में वापस खुलने तक पूरा क्षेत्र बर्फ से ढक जाता है, मार्ग भी बर्फ से बंद हो जाते हैं,इस अवधि में यंहा कोई नहीं रहता,दुकानों एवं मकानों की एक से दो मंजिल तक बर्फ में दब जाती हैं l ll जय श्री केदारनाथ ll क्रमश: अगले आलेख में केदारनाथ दर्शन (भाग दो )
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