Monday, 20 August 2012

हमारी चारधाम यात्रा – बद्रीनाथ धाम

हमारी चारधाम यात्रा – बद्रीनाथ धाम

श्री केदारनाथ धाम की यात्रा के बाद हमारी इस यात्रा का चौथा चरण था श्री बद्रीनाथ धाम यात्रा, 18 जून 2012 को केदारनाथ से वापस गौरीकुंड आने में हमें चार घंटे का समय लगा, बच्चों के साथ होने से हमारे कुछ साथियों को दो घंटे का समय अधिक लगा l रात्रि विश्राम हमने गौरीकुंड में ही किया और 19 जून को अमावस्या पर्व पर प्रात: पुन: गौरीकुंड में स्नान कर हम वंहा से ८ बजे रवाना होकर बद्रीनाथ की ओर निकले l सोनप्रयाग, गुप्तकाशी होते हुए हम मध्यान्ह 3 बजे भारत का स्विट्ज़रलैंड कहे जाने वाले स्थान चोपटा पंहुचे,यंहा से 3 किलोमीटर पहाड़ी पैदल मार्ग से जाकर पञ्च केदार में से एक “तुंगनाथ” का मंदिर है l तुंगनाथ से केदारखंड के हिम पर्वतों का विहंगम दृश्य दिखाई देता है ,यह स्थान इस क्षेत्र की सबसे ऊंची पर्वत चोटी पर स्थित है तथा शीतकाल में यह बर्फ से ढका रहता है, इस अवधि में यहाँ अनेक पर्यटक आते हैं l

चोपटा में कुछ समय भ्रमण कर हम मंडल, गोपेश्वर,चमोली होते हुए रात्रि में 9 बजे पीपलकोटी पंहुचे, मार्ग में हमने गोपेश्वर के अति प्राचीन कालीन मंदिर के दर्शन किये l रात्रि विश्राम की हमारी व्यवस्था यद्यपि जोशीमठ में थी किन्तु समय अधिक होने एवं रास्ता विकट होने के कारण हमने किसी खतरे की आशंका को टालते हुए पीपलकोटी ही में रात्रि विश्राम किया l यंहा से बद्रीनाथ की दूरी 77 किलोमीटर है l 20 जून को प्रात: जल्दी उठकर हम पीपलकोटी से रवाना होकर जोशीमठ पंहुचे, यंहा से बद्रीनाथ जाने हेतु वाहनों के लिए गेट सिस्टम है जिसके अनुसार कुछ समय के अंतराल से निश्चित संख्या में वाहनों को निकलने दिया जाता है ताकि विकट मार्ग में जाम लगने की स्थिति उत्पन्न न हो l कुछ देर की प्रतीक्षा के बाद हम जोशीमठ से निकल कर गोविन्दघाट, पांडूकेश्वर होते हुए 11 बजे श्री बद्रीनाथ धाम के बस स्टैंड पर पंहुचे l

गोविन्दघाट से हेमकुंड साहिब गुरद्वारा एवं विश्व प्रसिद्द फूलों की घाटी (velii of flowar) जाने के लिए 17 किलोमीटर का पैदल मार्ग है l केवल 77 किलोमीटर का रास्ता पार करने में हमें चार घंटे का समय लगा, विकट पहाड़ी घाटियों एवं गहरी खाइयों के कारण इस मार्ग पर 20 किलोमीटर प्रति घंटा से अधिक की रफ़्तार से वाहन नहीं चलाये जा सकते, ज़रा सी जल्दबाजी और असावधानी से कोई भी बड़ी दुर्घटना हो सकती है l रास्ते में हमें पहाड़ों से टूट कर गिरे बर्फ के अनेक ग्लेशियर पड़े हुए मिले साथ ही अनेक पहाड़ी चट्टानें भी l

बदीनाथधाम बस स्टैंड पर एक समाजसेवी संस्था द्वारा निशुल्क स्वास्थ्य जांच एवं चिकित्सा की दो मोबाइल वैन खडी थी हममें से भी कुछ ने इन सेवाओं का लाभ प्राप्त किया, यंहा से बद्रीनाथ मंदिर 3 किलोमीटर की दूरी पर है और एक किलोमीटर पहले तक वाहन जा सकते हैं l बद्रीनाथ धाम पंहुच कर सर्व प्रथम हमने अपने परिचित राजस्थान के श्री माधोपुर वाले श्री बाबू लाल जी चोटिया से उनके प्रतिष्ठान “मारवाड़ी मिस्ठान्न भंडार“ पर संपर्क किया और स्थानीय जानकारी प्राप्त की l

मंदिर के दर्शन 12 बजे बंद हो चुके थे और अब 3 बजे खुलने थे, इसलिए हमने पहले मंदिर के समीप ही तप्तकुंड में गर्म जल से स्नान किया एवं फिर कुछ चाय नाश्ता कर मंदिर पंहुचे, यंहा दर्शन हेतु यद्यपि काफी लम्बी कतार थी किन्तु श्री गोविन्द जी जयपुर से ही वी आई पी दर्शन की व्यवस्था कर चुके थे इसलिए हमने वी आई पी गेट से ही मंदिर में प्रवेश किया l

एक लम्बे समय से बद्रीनाथ धाम की यात्रा का स्वप्न आज पूरा होते देख कर मन को जो परम आनंद प्राप्त हो रहा था वह शब्दों द्वारा अभिव्यक्त करना संभव नहीं है, बद्री विशाल के इस पावन धाम में आने का अवसर किसी भी व्यक्ति के लिए परम सौभाग्य का विषय है, बहुत से यात्रियों को अनेक प्राकृतिक कारणों एवं अवरोधों के कारण श्री बद्री विशाल के दर्शन किये बिना ही मार्ग से ही वापस लोट जाना पड़ता है, समुद्र तल से 3133 मीटर की ऊंचाई पर अलकनंदा नदी की दाहिनी ओर नर एवं नारायण पर्वतों सहित नीलकंठ पर्वत की गोद में अवस्थित यह मंदिर यंहा आने वाले श्रद्धालुओं को मन्त्र मुग्ध कर देता है, मंदिर की भव्यता दूर से ही हर एक को ऐसा आकर्षित करती है कि वह अपलक इसे निहारता ही रहता है l

बद्रीनाथ मंदिर –

बदीनाथधाम की खोज आदिगुरू शंकराचार्य द्वारा आठवीं शताब्दी में की गई थी l अपनी योग सिद्धि एवं तपस्या के बल से शंकराचार्य ने ही अलकनंदा नदी के नारद कुण्ड से भगवान बद्री नारायण की मूर्ती को बाहर निकाल कर तप्तकुंड के पास गरुड़ गुफा में स्थापित किया था,सात शताब्दियों के कालांतर में गढ़वाल के महाराजा द्वारा मंदिर निर्माण कर इस विग्रह को वर्तमान मंदिर में स्थापित करवाया गया था तथा 18 वीं शताब्दी में इन्दोर की महारानी अहिल्याबाई होलकर द्वारा मंदिर पर स्वर्ण कलश स्थापित करवाए गए थे l बाद में भूकंप के कारण ध्वस्त हुए बदिनारायण मंदिर का वर्ष 1803 में जयपुर के महाराजा द्वारा पुनर्निर्माण करवाया गया था l समय एवं आवश्यकता के आधार पर इसका कई बार जीर्णोद्धार भी हुआ है, वर्तमान मंदिर स्थापत्य कला का अनुपम उदहारण कहा जा सकता है l अलकनंदा नदी से 50 मीटर ऊंचे धरातल पर निर्मित इस मंदिर का प्रवेश द्वार अलकनंदा नदी की ओर देखता हुआ है l

कुछ सीढियां चढ़ कर सर्व प्रथम मंदिर का कलात्मक मुख्य प्रवेश द्वार है जिसे सिंह द्वार कहा जाता है जिसके शीर्ष पर तीन स्वर्ण कलश लगे हुए हैं, सिंह द्वार की छत के मध्य में एक विशाल घंटी लटकी हुई है जो सिंह द्वार की शोभा को द्विगुणित करती है l सिंह द्वार में दक्षिण भारत की आकर्षक एवं कलात्मक कास्थ्कला का उत्कृष्ट प्रदर्शन है, इस सिंह द्वार की दोनों तरफ कलात्मक तिवार (बालकोनी) बनी हुई हैं तथा प्रवेश द्वार के अन्दर श्री बद्रीनारायण भगवान को निहारती भगवान विष्णु के वाहन श्री गरुड़ जी की काले पत्थर की करबद्ध मूर्ती विराजमान है, श्रद्धालु यात्री सर्व प्रथम इनके दर्शन कर तथा इन्हें टोपा या अंगवस्त्र धारण करा कर मंदिर के परिक्रमा परिसर अथवा सभा मंडप में प्रवेश करते हैं l सभा मंडप दो भागों में विभक्त है एक दर्शन मंडप और दूसरा पूजा मंडप l पूजा मंडप में बैठ कर श्रद्धालु विशेष पूजाएँ तथा आरती आदि करते हैं l सभा मंडप में मंदिर के धर्माधिकारी, नायब रावल एवं वेदपाठी विद्वानों के बैठने का स्थान है l

गर्भ गृह –

गर्भ गृह सभा मंडप से थोडा ऊंचा है इसके बाहर दोनों ओर दीवारों पर भगवान के द्वारपाल जय एवं विजय की मूर्तियाँ स्थापित हैं l गर्भगृह के अन्दर ठीक सामने काले रंग की शालिग्राम शिला स्वरुप में पद्मासन मुद्रा में स्वयं भगवान बद्री नारायण की प्रतिमा विराजमान है, प्रात:कालीन अभिषेक के पश्चात इस विग्रह का भव्य श्रृंगार किया जाता है, श्रृंगार के पश्चात शालिग्राम शिला में भगवान की पूर्ण आकृति के दर्शन होने लगते हैं l रत्नजडित स्वर्ण मुकुट एवं आभूषणों से सुसज्जित भगवान बद्री नारायण के नयनाभिराम दर्शन दर्शानार्थियों को मोहित कर देते हैं l श्री बद्री विशाल के अतिरिक्त गर्भ गृह में कुबेरजी, उद्धवजी, बद्रीनाथ के प्रथम अर्चक देवर्षि नारदजी, नर - नारायण आदि की मूर्तियाँ विराजमान हैं, इन विग्रहों के अतिरिक्त भगवान की चरण पादुका भी यंहा रखी है जो स्वयं भगवान ने उद्धव जी को बद्रीनाथ धाम में रखने के लिए दी थी l

परिक्रमा पथ –

मंदिर का परिक्रमा पथ काफी बड़ा है इसमें माँ लक्ष्मी, शंकराचार्य गद्दी, गणेश जी, लाल हनुमानजी एवं घंटाकर्ण के मंदिर बने हुए हैं l

1. लक्ष्मी मंदिर - परिक्रमा पथ में बद्री नारायण के दांयी ओर लक्ष्मी जी का मंदिर है, माँ लक्ष्मी की यह मूर्ती जब मंदिर के कपाट 6 माह के लिए बंद होते हैं तब यंहा से गर्भ गृह में श्री बद्री विशाल के साथ विराजित करदी जाती है तथा वंहा से अन्य देवताओं की मूर्तियाँ बाहर निकाल ली जाती हैं l मान्यता है कि कपाट बंद होने पर माँ लक्ष्मी भगवान बद्रीनाथ की चरण सेवा करती हैं तथा इस अवधी में श्री नारद जी सहित अन्य देवताओं द्वारा ही भगवान की पूजा - अर्चना की जाती है l

2. शंकराचार्य गद्दी - लक्ष्मी मंदिर के आगे आदिगुरू शंकराचार्य की गद्दी एवं मूर्ती रखी है, शंकराचार्य की इसी गद्दी को मंदिर के कपाट बंद होने पर जोशीमठ स्थित श्री नृसिंह मंदिर में ले जाया जाता है l

3. घंटाकर्ण - परिक्रमा पथ में बाँई ओर गणेशजी, हनुमानजी के मंदिरों के साथ एक अन्य मंदिर है जिसमें स्थानीय लोक देवता घंटाकर्ण की संगमरमर की मूर्ती है, शिव भक्त घंटाकर्ण एक हिंसक राक्षस था जो नारायण के दर्शन के बाद पापमुक्त हुआ था, एक अवतारी देवता के रूप में इसकी पूजा की जाती है तथा पांडूकेश्वर गाँव के ग्रामीण में यह आज भी अवतरित होता है l इन मंदिरों के अतिरिक्त परिक्रमा परिसर में मंदिर कार्यालय, भोगमंडी(रसोई घर), विशेष पूजा राशी जमा कराने हेतु काउंटर आदि बने हुए हैं l

तुलसी – बद्रीनाथ जी को विशेष प्रजाति की तुलसी की माला ही चढ़ाई जाती है जो इस क्षेत्र के पहाड़ी जंगलों में प्रचुर मात्रा में उत्पन्न होती है, इस तुलसी का अपना विशेष महत्व और स्वाद है इसकी सुगंध भी भिन्न है l तुलसी के अतिरिक्त ब्रम्ह कमल के पुष्पों से भगवान का श्रृंगार किया जाता है l

क्रमश: - बद्रीनाथ धाम - भाग दो 

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