Tuesday, 6 October 2015

कालेराम मंदिर, नासिक

काला राम मंदिर,  नासिक



दक्षिण के काशी कहे जाने वाले नगर नासिक का महत्व त्रेतायुग से विद्यमान है रामायण काल में अपने वनवास प्रवास के दौरान प्रभु रामचंद्र ने सीता एवं लक्ष्मण सहित कुछ समय के लिए इस स्थान पर  प्रवास किया था। जंहा जंहा प्रभु श्रीराम  के चरण पड़े वह भूमि पवित्र हो गई। उनके पदचिह्नों के रूप में अनेक मंदिर आज भी नासिक में स्थित हैं जो हमें रामायण काल का स्मरण कराते हैं l  
यूँ तो नासिक में प्रभु श्रीराम के कई मंदिर हैं। कालाराम, गोराराम, मुठे का राम, यहाँ तक कि महिलाओं के लिए विशेषराम आदि, किन्तु  इन सभी में 'कालाराम' की अपनी अलग ही विशेषता है। यह मंदिर ऐतिहासिक और पुरातात्विक दृष्टि से तो महत्व रखता ही है, साथ ही इसके  वास्तु शिल्प में  ‍इस तरह का आकर्षण है जो दर्शनार्थी को मंत्रमुग्ध कर देता है। शिल्प की दृष्टि से कालाराम मंदिर एवं त्र्यम्बकेश्वर मंदिर में बहुत समानता प्रतीत होती है l
पेशवा के सरदार रंगराव ओढ़ेकर द्वारा यह मंदिर ईस्वी सन 1782 में काले पाषाणों से नागर शैली में निर्मित कराया गया था। मंदिर में विराजित प्रभु श्रीराम सहित माता सीता एवं लक्ष्मण जी की मूर्तियाँ  भी काले पाषाण से बनी हुई है, कदाचित इसीलिए इसे 'कालाराम' कहा जाता है।
पूरा मंदिर 74 मीटर लंबा और 32 मीटर चौड़ा है। मंदिर की चारों दिशाओं में चार दरवाजे हैं। इस मंदिर के कलश तक की ऊँचाई 69 फीट है तथा कलश शुद्ध सोने से निर्मित किया हुआ है। पूर्व महाद्वार से प्रवेश करने पर भव्य सभामंडप नजर आता है, जिसकी ऊँचाई 12 फीट होने के साथ यहाँ चालीस स्तम्भ है। गर्भ गृह के सामने श्री हनुमानजी का मंदिर है, हनुमान जी की दृष्टी प्रभु श्रीराम के चरणों की ओर प्रतीत होती हैं।
कहा जाता है कि यह  मंदिर भगवान श्री राम द्वारा निर्मित पर्णकुटी के स्थान पर बनाया गया है, कुछ लोग पर्णकुटी का स्थान समीपस्थ तपोवन में बताते हैं l किम्वदंती है कि साधुओं को अरुणा-वरुणा नदियों पर प्रभु की यह मूर्ति प्राप्त हुई थी और उन्होंने इसे लकड़ी के मंदिर में विराजित किया था। तत्पश्चात 1780 में माधवराव पेशवा की मातोश्री गोपिकाबाई की सूचना पर इस मंदिर का निर्माण करवाया गया। उस काल के दौरान मंदिर निर्माण में 23 लाख का खर्च अनुमानित बताया जाता है।

मंदिर के समीप ही में सीता गुफा एवं पंचवटी स्थित है और दक्षिण की गंगा कही जाने वाली गोदावरी नदी भी समीप ही है जहाँ प्रसिद्ध रामकुंड है।

सन्दर्भों के अनुसार ईस्वी सन 1932 में डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर ने इसी कालेराम मंदिर में अस्पृश्यों / दलितों को प्रवेश दिलाने के लिए अस्पृश्यता उन्मूलन आन्दोलन किया था l


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