हमारी चारधाम यात्रा - "यमुनोत्री" हमारी चारधाम (उत्तराखंड) की यात्रा का प्रथम चरण था "यमुनोत्री" जिसे हिन्दुओं की पवित्र नदी यमुना का धाम कहा जाता है l १२ जून २०१२ को हम लोग प्रात: हरिद्वार से रवाना होकर देहरादून - मसूरी के रास्ते टिहरी बाँध होते हुए धरासू, ब्रम्ह्खाल , बडकोट, स्याना चट्टी से रात्री ८.३० बजे हनुमान चट्टी पहुंचे l मार्ग में हम सहस्र धारा, कैम्पटी फाल एवं टिहरी बाँध भी रुके, सहस्र धारा का सचित्र विवरण मैं अपने २९ जून के लेख में प्रकाशित कर चुका हूँ अन्य स्थानों का विवरण पृथक से यथा समय प्रकाशित करूँगा l ऋषिकेश से यमुनोत्री की दूरी २२२ किलो मीटर है, किन्तु पूरा मार्ग पहाड़ों के बीच घाटियों से होकर गुजरता है l 13 जून 2012 को प्रात: 6 बजे हम हनुमान चट्टी से यमुनोत्री के लिए निकले l यमुनोत्री यात्रा का विवरण लिखने से पूर्व श्री यमुनाजी के विषय में संक्षिप्त जानकारी देना उचित होगा : हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार "यमुना" भगवान सूर्य एवं देवी संज्ञा की पुत्री तथा मृत्यु के देवता यम की बहिन है इसीलिए यमुना को यमी भी कहा गया है , सूर्य पुत्र होने से शनि देव भी यमुना के भाई हैं l इस के अतिरिक्त यमुना भगवान् श्री कृष्ण की अति प्रिय अष्ट पटरानियों में से एक हैं जिन्हें कालिंदी भी कहा जाता है l पुष्टिमार्गीय बल्लभ सम्प्रदाय में श्री कृष्ण की अत्यंत प्रिय होने से यमुना जी को उनके साथ ही पूजित माना गया है और उनका स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है l बल्लभाचार्य श्री महाप्रभु जी ने तो श्री कृष्ण एवं यमुनाजी को एक साथ अपनी गोद में बिठा कर लाड लड़ाया है , श्री मद्भागवत सहित वेदों एवं पुराणों में श्री यमुना जी की महिमा का विस्तृत उल्लेख उपलब्ध है l यही कुछ मान्यताएं हैं जिनसे हिन्दू धर्म में यमुना को देवी एवं माता का सम्मान प्राप्त है l यम देवता की बहिन होने से यमुना को यमराज से कुछ ऐसे वरदान प्राप्त हैं जिनके अनुसार यमुना में स्नान करने वाले श्रद्धालुओं को यम की यातना एवं पापों से मुक्क्ति और मोक्ष प्राप्त होती है l यमुनोत्री से प्रवाहित होकर यमुना उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश,हरयाणा,हिमाचल प्रदेश,होते हुए दिल्ली के रास्ते इलाहाबाद पहुंचती है जंहा तीर्थराज प्रयाग में इसका गंगा एवं सरस्वती नदियों के साथ त्रिवेणी संगम होता है l यमुना का उद्गम : यमुना का उद्गम उत्तराखंड के हिमालय पर्वतों में से एक बन्दरपूँछ पर्वत की तलहटी में माना जाता है, कहा जाता है कि हनुमान जी ने तपस्या करते हुए हनुमान चट्टी में अपने शरीर का इतना विस्तार कर लिया था कि उनकी पूँछ पर्वत की चोटी तक पहुँच गई थी इसीलिए इस पर्वत को बन्दरपूँछ पर्वत कहा जाता है बन्दरपूँछ पर्वत तीन पर्वत चोटियों का एक समूह है जिसे कालिंद पर्वत भी कहा जाता है, कालिंद भगवान सूर्य देव का ही एक अन्य नाम है, इस पर्वत समूह में तीनों चोटियों के रंग पृथक हैं एक का सफ़ेद,दूसरी का स्वर्णिम तथा तीसरी चोटी का काला, तीनों ही पर्वत चोटियाँ बर्फ से आच्छादित हैं और यमुनोत्री से दिखाई देती हैं, इन से निकल कर आने वाला जल ही यमुना नदी का रूप लेता है, बन्दरपूँछ पर्वत की ऊँचाई समुद्र तल से ४४२१ मीटर मानी जाती है इस पर्वत पर स्थित चंपासर ग्लेशियर ही यमुना का मूल उद्गम स्थल है जो यमुनोत्री मंदिर से लगभग एक किलोमीटर ऊपर है किन्तु वंहा तक पंहुचने का मार्ग अत्यंत दुर्गम और खतरों से भरा है l मार्ग की सही पहचान न होने से बर्फीले पहाड़ों के बीच व्यक्ति इधर उधर भटक भी सकता है, अनुभवी एवं दक्ष पर्वतारोही ही वंहा जाने का साहस कर सकते हैं l इसीलिए श्रद्धालु यात्रियों की सुविधा के लिए यमुनोत्री मंदिर का निर्माण किया गया था ताकि वे यमुनोत्री मंदिर में ही यमुना जी की पूजा-अर्चना कर पुन्य लाभ प्राप्त कर सकें l कालिंद पर्वत के लगभग १२ किलोमीटर लम्बे परिधि क्षेत्र में ही सप्तऋषि कुंड-झील बताई जाती है जंहा दुर्लभ ब्रम्हकमल के पुष्प खिले रहते हैं l हनुमान चट्टी से जानकी चट्टी - हनुमान चट्टी को जितना प्रचारित किया गया है वैसा वंहा कुछ भी देखने को नहीं मिला यह एक बहुत छोटा सा गाँव है पहाड़ी पर एक छोटा सा हनुमान मंदिर है तथा यंहा हनुमान गंगा का यमुना के साथ संगम होता है, यात्रियों के रहने के लिए यदि कोई ठीक जगह है तो वह गढ़वाल विकास मंडल का एक ठीक ठाक होटल मात्र है बाकी स्थानीय लोगों ने अपने घरों में ही कमरों को होटल का रूप देकर अर्थोपार्जन का साधन बना रखा है गढ़वाल विकास मंडल के होटल में कमरे खाली नहीं होने से हमें भी मजबूरी में ऐसे ही कमरों में रात गुजारने को बाध्य होना पड़ा l हनुमान चट्टी की वजाय 6 किलोमीटर पहले स्यानाचट्टी रात्री विश्राम के लिए ज्यादा उपयुक्त है l होटल के नीचे ही एक ढाबे में खाना खाया, भूख और थकान में दाल, चपाती,चावल और सब्जी अच्छी लगी l थकान और नींद के मारे उन कमरों में भी कैसे रात गुज़र गई पता ही नहीं चला l सुबह 6 बजे हम लोग अपने वाहनों से हनुमान चट्टी से रवाना होकर 7 किलोमीटर दूर जानकी चट्टी पहुंचे यंहा से हमें यमुनोत्री के लिए 7 किलोमीटर की चढ़ाई पैदल ही चढ़नी थी l कुछ वर्ष पूर्व तक हनुमान चट्टी से ही यमुनोत्री का 14 किलोमीटर का मार्ग पैदल ही पार करना होता था किन्तु प्रशासन ने पहाड़ काट कर अब जानकीचट्टी तक का मार्ग वाहनों के लिए तैयार कर दिया जिससे बहुत सुविधा हो गई है l जानकीचट्टी से यात्री खच्चर, पालकी,कंडी या पिट्ठू किराये पर ले सकते हैं जिनका किराया मांग और आवश्यकता के अनुसार घटता बढ़ता रहता है l जानकी चट्टी से यमुनोत्री का 7 किलोमीटर का मार्ग सीधी और खडी चढ़ाई का है जो दुर्गम और थका देने वाला है किन्तु पूरा मार्ग प्राकृतिक सौन्दर्य से भरा है एक ओर ऊंचे गगन चुम्बी पर्वत, दूसरी ओर हज़ारों फीट गहरी खाई है जिसमे पूरे वेग से निरंतर यमुना नदी प्रवाहित रहती है पहाड़ ओर खाई के बीच में पैदल जाने का मार्ग है जो सकडा और पथरीला है जिस पर पैदल यात्री भी चलते हैं और खच्चर,पालकी तथा पिट्ठू भी चलते हैं यमुनोत्री जाने और वंहा से आने का एक मात्र यही रास्ता है l खाई इतनी गहरी है की यदि कोई वस्तु गिर जाये तो उसे निकालना तो दूर देख पाना भी कठिन है l पहाड़ों पर कहीं बर्फ जमी है तो कंही बड़े बड़े वृक्षों की हरियाली आच्छादित है पूरे मार्ग में वातावरण अत्यंत रमणीक और मन को सकून देने वाला है l पहाड़ों से पानी के झरने इतनी उंचाई गिरते हैं कि उन्हें निहारते रहने को मन करता है, प्रकृती के इस सौन्दर्य का वर्णन शब्दों में किया जाना कठिन है इसे तो प्रत्यक्ष अनुभव ही किया जा सकता है l स्वांस,रक्तचाप एवं ह्रदय सम्बन्धी व्याधियों से पीड़ित लोगों को इस दुर्गम मार्ग पर पैदल जाने का खतरा नहीं उठाना चाहिए l मेरी धर्मपत्नी के अतिरिक्त हमारे साथ गई दो अन्य महिलाएं पालकी से गईं बाकी बच्चों सहित हम 17 लोग सभी बिना किसी परेशानी या कठिनाई के लगभग तीन घंटे में पैदल ही यमुनोत्री पंहुचे l मार्ग में सफाई की व्यवस्था तो है किन्तु खच्चरों के कारण गंदगी भी कम नहीं है, यात्रियों के लिए पीने के पानी एवं टॉयलेट की अस्थाई सुविधाएँ भी उपलब्ध हैं l लगभग आधा किलोमीटर पूर्व से जब यमुनोत्री मंदिर का दृश्य दिखाई दिया तो मन प्रफुल्लित हो गया मंदिर के ऊपर बर्फसे आच्छादित गगनचुम्बी बन्दरपूँछ/ कालिंद पर्वत आकर्षक और सुहाने लग रहे थे l संलग्न फोटुओं से शायद आप भी इस दृश्य का आनंद ले सकेंगे l यमुनोत्री मंदिर : यमुनोत्री मंदिर के निर्माण के सम्बन्ध मतभेद हैं, यद्यपि कोई पुष्ट एवं प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है l प्राप्त जानकारी के अनुसार सर्व प्रथम 19 वी शताब्दी के प्रथम कालखंड जयपुर की महारानी गुलेरिया ने मंदिर का निर्माण करवाया था, टिहरी गढ़वाल के महाराजा प्रतापशाह द्वारा भी 1861 में मंदिर निर्माण का उल्लेख मिलता है जो अधिक पुष्ट माना जाता है l प्राकृतिक आपदाओं के कारण 1923 एवं 1982 में दो बार यह मंदिर क्षतिग्रस्त हुवा था जिसका जीर्णोद्धार करवाया गया था l वर्तमान मंदिर 3235 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, मंदिर यद्यपि इतना विशाल तो नहीं कहा जा सकता किन्तु भव्य है l मंदिर के गर्भ गृह में देवी यमुना मैया एवं गंगा मैया की भव्य पाषाण प्रतिमाएं विराजित हैं जो सदैव पूर्ण श्रंगारित रहती हैं l एक प्रतिमा काले पत्थर की है जो यमुना जी की है और दूसरी प्रतिमा सफ़ेद पत्थर की है जो गंगा मैया की है चांदी धातु की एक अन्य प्रतिमा भी है जो यमुना मैया की ही है तथा शीतकाल में (नवम्बर से अप्रैल ) जब मंदिर के कपाट बंद रहते हैं तब छै माह तक यह चलायमान रजत मूर्ति जानकीचट्टी के समीप खरसाली गाँव में स्थित मंदिर में विराजित रहती है और वहीँ यमुना जी की पूजा-अर्चना की जाती है l दीपावली के बाद यमद्वितीया को मंदिर के कपाट छै माह के लिए बंद होते हैं उस दिन इस रजत मूर्ती को पारंपरिक रूप से सुसज्जित डोली में विराजमान कर खरसाली गाँव ले जाया जाता है l ऎसी मान्यता है कि खरसाली गाँव यमुना कि माता संज्ञा का निवास स्थल है और यमुना के भाई शनि देव स्वयं अपनी बहिन यमुना को लिवाने के लिए यमुनोत्री जाते हैं l शीतकाल में यमुनोत्री मंदिर परिसर (क्षेत्र) पूरी तरह से से निर्जन एवं बर्फ से ढका रहता है इस अवधि में वंहा कोई मनुष्य नहीं रहता, सब लोग नीचे जानकीचट्टी,खरसाली अथवा आस-पास के अपने गांवों में चले जाते हैं l ऐसे में भी वंहा एक संत का रहना आश्चर्य जनक है जिनका उल्लेख मैं आगे करूँगा l दिव्य शिला : यमुनोत्री के मुख्य मंदिर के समीप बल्कि उसकी बगल में ही सूर्य कुंड के पास एक छोटा मंदिर है जिसमें एक शिला (चट्टान) की पूजा की जाती है जिसे दिव्य शिला कहते हैं l इस शिला के नीचे जमीन से सदैव गर्म जल का स्रोत प्रवाहित होता रहता है कभी कभी तो इस जल की गति इतनी तीव्र हो जाती है कि गर्म जल का फव्वारा सा निकलने लगता है और कभी मन्दिम गति से जल रिसता रहता है l मान्यता है कि बन्दरपूँछ पर्वत अथवा कालिंद पर्वत पर चंपासर ग्लेशियर से यमुना का उद्गम होता है किन्तु वंहा तक लोगों का जा पाना संभव नहीं है इसलिए यमुना जी यहाँ इस दिव्य शिला में प्रकट हुई हैं और इसे भी वही मान्यता प्राप्त है जो यमुना के मूल उद्गम स्थान को प्राप्त है l यमुनोत्री मंदिर में प्रवेश से पूर्व इस दिव्य शिला की पूजा अर्चना करना आवश्यक है l यंहा पूजा करने के बाद ही मंदिर में प्रवेश किय जाता है l सच तो यह है कि पूजा तो यंही होती है मंदिर में तो केवल यमुना जी के दर्शन ही होते हैं l मैंने शिला का स्पर्श कर गर्म जल का प्रत्यक्ष अनुभव किया है l दिव्य शिला के ऊपर यमुना जी का आकर्षक चित्र एवं यमुना आरती आदि अंकित है l हमने भी सामूहिक रूप से पूजा कराई तथा पंडित जी से आशीर्वाद प्राप्त किया l पूजा कराने वाले पंडितों के क्षेत्र बंटे हुए हैं अपने अपने क्षेत्र के यात्रियों से वही पूजा करवाते हैं l सूर्य कुंड : यमुनोत्री मंदिर एवं दिव्यशिला मंदिर के मध्य में एक छोटा सा कुंड है जिसे सूर्य कुंड कहा जाता है, इस कुंड में दिन रात बारह मास हर मौसम में सदैव खोलता (उबलता) हुआ गर्म जल रहता है l इसका तापमान 190 डिग्री बताया जाता है और यह सही भी है l ऎसी परंपरा है कि श्रद्धालु यात्री इस कुंड के जल में चावल या आलू पकाते हैं और उनका भोग यमुना जी को लगा कर प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं l अब तक सुना ही था किन्तु वंहा जाकर ऐसा होते हुए प्रत्यक्ष देखा, यात्री नए एवं स्वच्छ पतले वस्त्र में चावल या आलू बांध कर इस कुंड में डुबाते हैं और कुछ ही क्षणों में वह पक कर तैयार हो जाते हैं l इसे प्रकृति का दैवीय चमत्कार ही कह जा सकता है, जंहा चारों और ओर बर्फ हो और तापमान शून्य से भी बहुत नीचे तक चला जाता हो वंहा खोलते हुए पानी का वह भी शास्वत, ईश्वर का चमत्कार ही हो सकता है l तप्त कुंड : मंदिर के समीप ही गर्म जल के कुंड बने हुए हैं जिनमे यात्री स्नान करते हैं , एक गौमुख से इन कुंडों में गर्म जल प्रवाहित होता रहता है l इस कुंड को तप्त कुंड कहा जाता है, पुरुषों एवं महिलाओं के लिए पृथक पृथक कुंड बने हैं जिनकी गहराई कमर तक है, कुंड के भीतर कहीं कहीं पत्थर के नीचे भी गर्म जल का अनुभव होता है पांव रखने पर लगता है कि पांव जल जायेगा, गौमुख से निकलने वाल पानी भी इतना गर्म होता है कि उसे हाथ में नहीं लिया जा सकता l इन तप्त कुंडों की विशेषता यह है कि इनमें स्नान करने से यात्रियों की सारी थकान बिलकुल समाप्त हो जाती है और वे पूर्ण रूप से ताजगी का अनुभव करते हैं, दुर्गम रास्ते की चढ़ाई से होने वाली थकान या शारीरिक पीड़ा स्नान करते ही गायब हो जाती है l यंहा स्नान के बाद ही पूजा-दर्शन का कार्य होता है l स्नान कर बाहर निकलने पर वातावरण की ठंडक भी महसूस होती है l राम मंदिर : संत राम भरोसे दास जी महाराज यमुनोत्री मंदिर से लगता हुआ एक अन्य मंदिर है जिसमें राम दरबार की भव्य प्रतिमाएं विराजित एवं पूजित हैं , यह स्थान कभी गुफा के रूप में था जिसे अब मंदिर का रूप दिया जा चुका है, जैसा कि मैंने पहले जिक्र किया था कि शीतकाल में जब यमुनोत्री क्षेत्र बिलकुल निर्जन हो जाता है और चारों तरफ बर्फ ही बर्फ होती है ऐसे में भी एक संत यंहा रहते हैं, यह मंदिर उन्ही संत श्री राम भरोसे दास जी महाराज कि तपस्या स्थली है, स्थानीय लोगों ने जानकारी दी कि यह संत हमेशा यहीं निवास करते हैं और तपस्या एवं भक्ति में लीन रहते हैं l संत महाराज न तो ज्यादा बोलते हैं न ही किसी से कोई अपेक्षा करते हैं l लगभग 85 वर्ष की आयु में भी मुख मंडल पर दिव्य तेज विद्यमान है कुछ समय का उनके साथ मेरा सानिध्य परम सुख दायक था, ऐसी तपस्वी एवं दर्शनीय विभूति को कोटि कोटि नमन l असित मुनि एवं यमुनोत्री धाम की ऐतिहासिकता : मान्यता है कि वर्तमान में जंहा यमुनोत्री का भव्य मंदिर स्थित है वह स्थान कभी असित मुनि की तपस्या स्थली था l असित मुनि इस बीहड़ निर्जन क्षेत्र में तपस्यालीन रहते थे गुफाओं में उनका निवास था जो कंही कंही अभी भी दृष्टव्य हैं l कहा जाता है कि वे प्रतिदिन नियमित रूप से यमुना एवं गंगा दोनों पवित्र नदियों में स्नान करते थे जो उनकी तपस्या एवं योग साधना से ही संभव था क्योंकि यमुना एवं गंगा विपरीत दिशाओं में और बहुत दूरी पर स्थित हैं l कालांतर में जब असित मुनि वृद्धावस्था एवं शारीरिक अक्षमता के कारण मुनि के लिए गंगा स्नान संभव नहीं रहा तो गंगा नदी की एक पवित्र धारा यमुना के समीप ही स्वयं प्रस्फुटित हो गई और मुनि का यमुना-गंगा स्नान का नियमित क्रम यथावत बना रहा l असित मुनि की उसी तपस्यास्थली पर वर्तमान यमुनोत्री मंदिर अवस्थित है l कदाचित इसी मान्यता एवं सन्दर्भ से यमुनोत्री मंदिर के गर्भगृह में यमुनाजी के साथ गंगाजी की भी मूर्ती प्रतिष्ठापित एवं पूजित है l इस सन्दर्भ में यही कहा जा सकता है कि तपस्या एवं भक्ति के बल पर कुछ भी असंभव नहीं था, आज सुनने या पढने में हमें असित मुनि की यह बात कपोल कल्पित भले ही लगे किन्तु रामायण एवं भागवत सहित हमारे प्राचीन पुराणों में ऐसे अनेक सन्दर्भ विद्यमान हैं जिनकी सत्यता को चुनौती नहीं दी जा सकती l यमुनोत्री एवं इसके मार्ग में स्थानीय गढ़वालियों ने अनेक दुकानें लगा रखी हैं जो अस्थाई रूप से टेंट एवं टीन शेड से बनी हुई हैं इनमें साधारण खाने पीने की वस्तुएं ही मिल सकती हैं वह भी सामान्य स्तर की,अच्छे एवं स्तरीय रेस्टोरेंट का अभाव है l मौसम अप्रैल से सितम्बर - दिन में सुहाना रात में ठंडा रहता है, किन्तु जुलाई - अगस्त में भारी बरसात रहती है,ओक्टोबर - नवम्बर में भारी ठण्ड रहती है l ll जय यमुना मैया की ll
Wednesday, 18 July 2012
चारधाम यात्रा - "यमुनोत्री"
हमारी चारधाम यात्रा - "यमुनोत्री" हमारी चारधाम (उत्तराखंड) की यात्रा का प्रथम चरण था "यमुनोत्री" जिसे हिन्दुओं की पवित्र नदी यमुना का धाम कहा जाता है l १२ जून २०१२ को हम लोग प्रात: हरिद्वार से रवाना होकर देहरादून - मसूरी के रास्ते टिहरी बाँध होते हुए धरासू, ब्रम्ह्खाल , बडकोट, स्याना चट्टी से रात्री ८.३० बजे हनुमान चट्टी पहुंचे l मार्ग में हम सहस्र धारा, कैम्पटी फाल एवं टिहरी बाँध भी रुके, सहस्र धारा का सचित्र विवरण मैं अपने २९ जून के लेख में प्रकाशित कर चुका हूँ अन्य स्थानों का विवरण पृथक से यथा समय प्रकाशित करूँगा l ऋषिकेश से यमुनोत्री की दूरी २२२ किलो मीटर है, किन्तु पूरा मार्ग पहाड़ों के बीच घाटियों से होकर गुजरता है l 13 जून 2012 को प्रात: 6 बजे हम हनुमान चट्टी से यमुनोत्री के लिए निकले l यमुनोत्री यात्रा का विवरण लिखने से पूर्व श्री यमुनाजी के विषय में संक्षिप्त जानकारी देना उचित होगा : हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार "यमुना" भगवान सूर्य एवं देवी संज्ञा की पुत्री तथा मृत्यु के देवता यम की बहिन है इसीलिए यमुना को यमी भी कहा गया है , सूर्य पुत्र होने से शनि देव भी यमुना के भाई हैं l इस के अतिरिक्त यमुना भगवान् श्री कृष्ण की अति प्रिय अष्ट पटरानियों में से एक हैं जिन्हें कालिंदी भी कहा जाता है l पुष्टिमार्गीय बल्लभ सम्प्रदाय में श्री कृष्ण की अत्यंत प्रिय होने से यमुना जी को उनके साथ ही पूजित माना गया है और उनका स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है l बल्लभाचार्य श्री महाप्रभु जी ने तो श्री कृष्ण एवं यमुनाजी को एक साथ अपनी गोद में बिठा कर लाड लड़ाया है , श्री मद्भागवत सहित वेदों एवं पुराणों में श्री यमुना जी की महिमा का विस्तृत उल्लेख उपलब्ध है l यही कुछ मान्यताएं हैं जिनसे हिन्दू धर्म में यमुना को देवी एवं माता का सम्मान प्राप्त है l यम देवता की बहिन होने से यमुना को यमराज से कुछ ऐसे वरदान प्राप्त हैं जिनके अनुसार यमुना में स्नान करने वाले श्रद्धालुओं को यम की यातना एवं पापों से मुक्क्ति और मोक्ष प्राप्त होती है l यमुनोत्री से प्रवाहित होकर यमुना उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश,हरयाणा,हिमाचल प्रदेश,होते हुए दिल्ली के रास्ते इलाहाबाद पहुंचती है जंहा तीर्थराज प्रयाग में इसका गंगा एवं सरस्वती नदियों के साथ त्रिवेणी संगम होता है l यमुना का उद्गम : यमुना का उद्गम उत्तराखंड के हिमालय पर्वतों में से एक बन्दरपूँछ पर्वत की तलहटी में माना जाता है, कहा जाता है कि हनुमान जी ने तपस्या करते हुए हनुमान चट्टी में अपने शरीर का इतना विस्तार कर लिया था कि उनकी पूँछ पर्वत की चोटी तक पहुँच गई थी इसीलिए इस पर्वत को बन्दरपूँछ पर्वत कहा जाता है बन्दरपूँछ पर्वत तीन पर्वत चोटियों का एक समूह है जिसे कालिंद पर्वत भी कहा जाता है, कालिंद भगवान सूर्य देव का ही एक अन्य नाम है, इस पर्वत समूह में तीनों चोटियों के रंग पृथक हैं एक का सफ़ेद,दूसरी का स्वर्णिम तथा तीसरी चोटी का काला, तीनों ही पर्वत चोटियाँ बर्फ से आच्छादित हैं और यमुनोत्री से दिखाई देती हैं, इन से निकल कर आने वाला जल ही यमुना नदी का रूप लेता है, बन्दरपूँछ पर्वत की ऊँचाई समुद्र तल से ४४२१ मीटर मानी जाती है इस पर्वत पर स्थित चंपासर ग्लेशियर ही यमुना का मूल उद्गम स्थल है जो यमुनोत्री मंदिर से लगभग एक किलोमीटर ऊपर है किन्तु वंहा तक पंहुचने का मार्ग अत्यंत दुर्गम और खतरों से भरा है l मार्ग की सही पहचान न होने से बर्फीले पहाड़ों के बीच व्यक्ति इधर उधर भटक भी सकता है, अनुभवी एवं दक्ष पर्वतारोही ही वंहा जाने का साहस कर सकते हैं l इसीलिए श्रद्धालु यात्रियों की सुविधा के लिए यमुनोत्री मंदिर का निर्माण किया गया था ताकि वे यमुनोत्री मंदिर में ही यमुना जी की पूजा-अर्चना कर पुन्य लाभ प्राप्त कर सकें l कालिंद पर्वत के लगभग १२ किलोमीटर लम्बे परिधि क्षेत्र में ही सप्तऋषि कुंड-झील बताई जाती है जंहा दुर्लभ ब्रम्हकमल के पुष्प खिले रहते हैं l हनुमान चट्टी से जानकी चट्टी - हनुमान चट्टी को जितना प्रचारित किया गया है वैसा वंहा कुछ भी देखने को नहीं मिला यह एक बहुत छोटा सा गाँव है पहाड़ी पर एक छोटा सा हनुमान मंदिर है तथा यंहा हनुमान गंगा का यमुना के साथ संगम होता है, यात्रियों के रहने के लिए यदि कोई ठीक जगह है तो वह गढ़वाल विकास मंडल का एक ठीक ठाक होटल मात्र है बाकी स्थानीय लोगों ने अपने घरों में ही कमरों को होटल का रूप देकर अर्थोपार्जन का साधन बना रखा है गढ़वाल विकास मंडल के होटल में कमरे खाली नहीं होने से हमें भी मजबूरी में ऐसे ही कमरों में रात गुजारने को बाध्य होना पड़ा l हनुमान चट्टी की वजाय 6 किलोमीटर पहले स्यानाचट्टी रात्री विश्राम के लिए ज्यादा उपयुक्त है l होटल के नीचे ही एक ढाबे में खाना खाया, भूख और थकान में दाल, चपाती,चावल और सब्जी अच्छी लगी l थकान और नींद के मारे उन कमरों में भी कैसे रात गुज़र गई पता ही नहीं चला l सुबह 6 बजे हम लोग अपने वाहनों से हनुमान चट्टी से रवाना होकर 7 किलोमीटर दूर जानकी चट्टी पहुंचे यंहा से हमें यमुनोत्री के लिए 7 किलोमीटर की चढ़ाई पैदल ही चढ़नी थी l कुछ वर्ष पूर्व तक हनुमान चट्टी से ही यमुनोत्री का 14 किलोमीटर का मार्ग पैदल ही पार करना होता था किन्तु प्रशासन ने पहाड़ काट कर अब जानकीचट्टी तक का मार्ग वाहनों के लिए तैयार कर दिया जिससे बहुत सुविधा हो गई है l जानकीचट्टी से यात्री खच्चर, पालकी,कंडी या पिट्ठू किराये पर ले सकते हैं जिनका किराया मांग और आवश्यकता के अनुसार घटता बढ़ता रहता है l जानकी चट्टी से यमुनोत्री का 7 किलोमीटर का मार्ग सीधी और खडी चढ़ाई का है जो दुर्गम और थका देने वाला है किन्तु पूरा मार्ग प्राकृतिक सौन्दर्य से भरा है एक ओर ऊंचे गगन चुम्बी पर्वत, दूसरी ओर हज़ारों फीट गहरी खाई है जिसमे पूरे वेग से निरंतर यमुना नदी प्रवाहित रहती है पहाड़ ओर खाई के बीच में पैदल जाने का मार्ग है जो सकडा और पथरीला है जिस पर पैदल यात्री भी चलते हैं और खच्चर,पालकी तथा पिट्ठू भी चलते हैं यमुनोत्री जाने और वंहा से आने का एक मात्र यही रास्ता है l खाई इतनी गहरी है की यदि कोई वस्तु गिर जाये तो उसे निकालना तो दूर देख पाना भी कठिन है l पहाड़ों पर कहीं बर्फ जमी है तो कंही बड़े बड़े वृक्षों की हरियाली आच्छादित है पूरे मार्ग में वातावरण अत्यंत रमणीक और मन को सकून देने वाला है l पहाड़ों से पानी के झरने इतनी उंचाई गिरते हैं कि उन्हें निहारते रहने को मन करता है, प्रकृती के इस सौन्दर्य का वर्णन शब्दों में किया जाना कठिन है इसे तो प्रत्यक्ष अनुभव ही किया जा सकता है l स्वांस,रक्तचाप एवं ह्रदय सम्बन्धी व्याधियों से पीड़ित लोगों को इस दुर्गम मार्ग पर पैदल जाने का खतरा नहीं उठाना चाहिए l मेरी धर्मपत्नी के अतिरिक्त हमारे साथ गई दो अन्य महिलाएं पालकी से गईं बाकी बच्चों सहित हम 17 लोग सभी बिना किसी परेशानी या कठिनाई के लगभग तीन घंटे में पैदल ही यमुनोत्री पंहुचे l मार्ग में सफाई की व्यवस्था तो है किन्तु खच्चरों के कारण गंदगी भी कम नहीं है, यात्रियों के लिए पीने के पानी एवं टॉयलेट की अस्थाई सुविधाएँ भी उपलब्ध हैं l लगभग आधा किलोमीटर पूर्व से जब यमुनोत्री मंदिर का दृश्य दिखाई दिया तो मन प्रफुल्लित हो गया मंदिर के ऊपर बर्फसे आच्छादित गगनचुम्बी बन्दरपूँछ/ कालिंद पर्वत आकर्षक और सुहाने लग रहे थे l संलग्न फोटुओं से शायद आप भी इस दृश्य का आनंद ले सकेंगे l यमुनोत्री मंदिर : यमुनोत्री मंदिर के निर्माण के सम्बन्ध मतभेद हैं, यद्यपि कोई पुष्ट एवं प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है l प्राप्त जानकारी के अनुसार सर्व प्रथम 19 वी शताब्दी के प्रथम कालखंड जयपुर की महारानी गुलेरिया ने मंदिर का निर्माण करवाया था, टिहरी गढ़वाल के महाराजा प्रतापशाह द्वारा भी 1861 में मंदिर निर्माण का उल्लेख मिलता है जो अधिक पुष्ट माना जाता है l प्राकृतिक आपदाओं के कारण 1923 एवं 1982 में दो बार यह मंदिर क्षतिग्रस्त हुवा था जिसका जीर्णोद्धार करवाया गया था l वर्तमान मंदिर 3235 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, मंदिर यद्यपि इतना विशाल तो नहीं कहा जा सकता किन्तु भव्य है l मंदिर के गर्भ गृह में देवी यमुना मैया एवं गंगा मैया की भव्य पाषाण प्रतिमाएं विराजित हैं जो सदैव पूर्ण श्रंगारित रहती हैं l एक प्रतिमा काले पत्थर की है जो यमुना जी की है और दूसरी प्रतिमा सफ़ेद पत्थर की है जो गंगा मैया की है चांदी धातु की एक अन्य प्रतिमा भी है जो यमुना मैया की ही है तथा शीतकाल में (नवम्बर से अप्रैल ) जब मंदिर के कपाट बंद रहते हैं तब छै माह तक यह चलायमान रजत मूर्ति जानकीचट्टी के समीप खरसाली गाँव में स्थित मंदिर में विराजित रहती है और वहीँ यमुना जी की पूजा-अर्चना की जाती है l दीपावली के बाद यमद्वितीया को मंदिर के कपाट छै माह के लिए बंद होते हैं उस दिन इस रजत मूर्ती को पारंपरिक रूप से सुसज्जित डोली में विराजमान कर खरसाली गाँव ले जाया जाता है l ऎसी मान्यता है कि खरसाली गाँव यमुना कि माता संज्ञा का निवास स्थल है और यमुना के भाई शनि देव स्वयं अपनी बहिन यमुना को लिवाने के लिए यमुनोत्री जाते हैं l शीतकाल में यमुनोत्री मंदिर परिसर (क्षेत्र) पूरी तरह से से निर्जन एवं बर्फ से ढका रहता है इस अवधि में वंहा कोई मनुष्य नहीं रहता, सब लोग नीचे जानकीचट्टी,खरसाली अथवा आस-पास के अपने गांवों में चले जाते हैं l ऐसे में भी वंहा एक संत का रहना आश्चर्य जनक है जिनका उल्लेख मैं आगे करूँगा l दिव्य शिला : यमुनोत्री के मुख्य मंदिर के समीप बल्कि उसकी बगल में ही सूर्य कुंड के पास एक छोटा मंदिर है जिसमें एक शिला (चट्टान) की पूजा की जाती है जिसे दिव्य शिला कहते हैं l इस शिला के नीचे जमीन से सदैव गर्म जल का स्रोत प्रवाहित होता रहता है कभी कभी तो इस जल की गति इतनी तीव्र हो जाती है कि गर्म जल का फव्वारा सा निकलने लगता है और कभी मन्दिम गति से जल रिसता रहता है l मान्यता है कि बन्दरपूँछ पर्वत अथवा कालिंद पर्वत पर चंपासर ग्लेशियर से यमुना का उद्गम होता है किन्तु वंहा तक लोगों का जा पाना संभव नहीं है इसलिए यमुना जी यहाँ इस दिव्य शिला में प्रकट हुई हैं और इसे भी वही मान्यता प्राप्त है जो यमुना के मूल उद्गम स्थान को प्राप्त है l यमुनोत्री मंदिर में प्रवेश से पूर्व इस दिव्य शिला की पूजा अर्चना करना आवश्यक है l यंहा पूजा करने के बाद ही मंदिर में प्रवेश किय जाता है l सच तो यह है कि पूजा तो यंही होती है मंदिर में तो केवल यमुना जी के दर्शन ही होते हैं l मैंने शिला का स्पर्श कर गर्म जल का प्रत्यक्ष अनुभव किया है l दिव्य शिला के ऊपर यमुना जी का आकर्षक चित्र एवं यमुना आरती आदि अंकित है l हमने भी सामूहिक रूप से पूजा कराई तथा पंडित जी से आशीर्वाद प्राप्त किया l पूजा कराने वाले पंडितों के क्षेत्र बंटे हुए हैं अपने अपने क्षेत्र के यात्रियों से वही पूजा करवाते हैं l सूर्य कुंड : यमुनोत्री मंदिर एवं दिव्यशिला मंदिर के मध्य में एक छोटा सा कुंड है जिसे सूर्य कुंड कहा जाता है, इस कुंड में दिन रात बारह मास हर मौसम में सदैव खोलता (उबलता) हुआ गर्म जल रहता है l इसका तापमान 190 डिग्री बताया जाता है और यह सही भी है l ऎसी परंपरा है कि श्रद्धालु यात्री इस कुंड के जल में चावल या आलू पकाते हैं और उनका भोग यमुना जी को लगा कर प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं l अब तक सुना ही था किन्तु वंहा जाकर ऐसा होते हुए प्रत्यक्ष देखा, यात्री नए एवं स्वच्छ पतले वस्त्र में चावल या आलू बांध कर इस कुंड में डुबाते हैं और कुछ ही क्षणों में वह पक कर तैयार हो जाते हैं l इसे प्रकृति का दैवीय चमत्कार ही कह जा सकता है, जंहा चारों और ओर बर्फ हो और तापमान शून्य से भी बहुत नीचे तक चला जाता हो वंहा खोलते हुए पानी का वह भी शास्वत, ईश्वर का चमत्कार ही हो सकता है l तप्त कुंड : मंदिर के समीप ही गर्म जल के कुंड बने हुए हैं जिनमे यात्री स्नान करते हैं , एक गौमुख से इन कुंडों में गर्म जल प्रवाहित होता रहता है l इस कुंड को तप्त कुंड कहा जाता है, पुरुषों एवं महिलाओं के लिए पृथक पृथक कुंड बने हैं जिनकी गहराई कमर तक है, कुंड के भीतर कहीं कहीं पत्थर के नीचे भी गर्म जल का अनुभव होता है पांव रखने पर लगता है कि पांव जल जायेगा, गौमुख से निकलने वाल पानी भी इतना गर्म होता है कि उसे हाथ में नहीं लिया जा सकता l इन तप्त कुंडों की विशेषता यह है कि इनमें स्नान करने से यात्रियों की सारी थकान बिलकुल समाप्त हो जाती है और वे पूर्ण रूप से ताजगी का अनुभव करते हैं, दुर्गम रास्ते की चढ़ाई से होने वाली थकान या शारीरिक पीड़ा स्नान करते ही गायब हो जाती है l यंहा स्नान के बाद ही पूजा-दर्शन का कार्य होता है l स्नान कर बाहर निकलने पर वातावरण की ठंडक भी महसूस होती है l राम मंदिर : संत राम भरोसे दास जी महाराज यमुनोत्री मंदिर से लगता हुआ एक अन्य मंदिर है जिसमें राम दरबार की भव्य प्रतिमाएं विराजित एवं पूजित हैं , यह स्थान कभी गुफा के रूप में था जिसे अब मंदिर का रूप दिया जा चुका है, जैसा कि मैंने पहले जिक्र किया था कि शीतकाल में जब यमुनोत्री क्षेत्र बिलकुल निर्जन हो जाता है और चारों तरफ बर्फ ही बर्फ होती है ऐसे में भी एक संत यंहा रहते हैं, यह मंदिर उन्ही संत श्री राम भरोसे दास जी महाराज कि तपस्या स्थली है, स्थानीय लोगों ने जानकारी दी कि यह संत हमेशा यहीं निवास करते हैं और तपस्या एवं भक्ति में लीन रहते हैं l संत महाराज न तो ज्यादा बोलते हैं न ही किसी से कोई अपेक्षा करते हैं l लगभग 85 वर्ष की आयु में भी मुख मंडल पर दिव्य तेज विद्यमान है कुछ समय का उनके साथ मेरा सानिध्य परम सुख दायक था, ऐसी तपस्वी एवं दर्शनीय विभूति को कोटि कोटि नमन l असित मुनि एवं यमुनोत्री धाम की ऐतिहासिकता : मान्यता है कि वर्तमान में जंहा यमुनोत्री का भव्य मंदिर स्थित है वह स्थान कभी असित मुनि की तपस्या स्थली था l असित मुनि इस बीहड़ निर्जन क्षेत्र में तपस्यालीन रहते थे गुफाओं में उनका निवास था जो कंही कंही अभी भी दृष्टव्य हैं l कहा जाता है कि वे प्रतिदिन नियमित रूप से यमुना एवं गंगा दोनों पवित्र नदियों में स्नान करते थे जो उनकी तपस्या एवं योग साधना से ही संभव था क्योंकि यमुना एवं गंगा विपरीत दिशाओं में और बहुत दूरी पर स्थित हैं l कालांतर में जब असित मुनि वृद्धावस्था एवं शारीरिक अक्षमता के कारण मुनि के लिए गंगा स्नान संभव नहीं रहा तो गंगा नदी की एक पवित्र धारा यमुना के समीप ही स्वयं प्रस्फुटित हो गई और मुनि का यमुना-गंगा स्नान का नियमित क्रम यथावत बना रहा l असित मुनि की उसी तपस्यास्थली पर वर्तमान यमुनोत्री मंदिर अवस्थित है l कदाचित इसी मान्यता एवं सन्दर्भ से यमुनोत्री मंदिर के गर्भगृह में यमुनाजी के साथ गंगाजी की भी मूर्ती प्रतिष्ठापित एवं पूजित है l इस सन्दर्भ में यही कहा जा सकता है कि तपस्या एवं भक्ति के बल पर कुछ भी असंभव नहीं था, आज सुनने या पढने में हमें असित मुनि की यह बात कपोल कल्पित भले ही लगे किन्तु रामायण एवं भागवत सहित हमारे प्राचीन पुराणों में ऐसे अनेक सन्दर्भ विद्यमान हैं जिनकी सत्यता को चुनौती नहीं दी जा सकती l यमुनोत्री एवं इसके मार्ग में स्थानीय गढ़वालियों ने अनेक दुकानें लगा रखी हैं जो अस्थाई रूप से टेंट एवं टीन शेड से बनी हुई हैं इनमें साधारण खाने पीने की वस्तुएं ही मिल सकती हैं वह भी सामान्य स्तर की,अच्छे एवं स्तरीय रेस्टोरेंट का अभाव है l मौसम अप्रैल से सितम्बर - दिन में सुहाना रात में ठंडा रहता है, किन्तु जुलाई - अगस्त में भारी बरसात रहती है,ओक्टोबर - नवम्बर में भारी ठण्ड रहती है l ll जय यमुना मैया की ll
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