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Kashi Vishwnath Temple, Uttarkashi |
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Vishwnath Temple, Guptkashi |
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Kashi Vishwnath Temple, Uttarkashi |
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Shakti Stambh (Trishool) Shakti Mandir, Uttarkashi |
हमारी चारधाम यात्रा के तीसरे चरण में हमें गंगोत्री से केदारनाथ जाना था, हम लोग गंगोत्री मंदिर एवं अन्य स्थानीय दर्शनीय स्थानों में घूम कर 15 जून 2012 को मध्यान्ह गंगोत्री से केदारनाथ के लिए रवाना हुए जो यंहा से 270 किलोमीटर की दूरी पर है इस मार्ग के मध्य कुछ दर्शनीय स्थानों का विवरण देना आवश्यक मानते हुए मैं आपको उत्तरकाशी एवं गुप्तकाशी के विषय में बताना चाहूँगा l गंगोत्री यात्रा का विवरण मैं अपने 19 जुलाई के आलेख में दे चुका हूँ l
उत्तरकाशी -
गंगोत्री से उत्तरकाशी का सफ़र 100 किलोमीटर का है पूरा मार्ग भागीरथी नदी एवं पहाड़ी वादियों एवं घाटियों के साथ चलता है,गंगोत्री से हम भैरूघाटी,धराली,हरसिल,गंगनानी,भटवाडी होते हुए सायंकाल 7 बजे उत्तरकाशी पहुंचे l
उत्तरकाशी उत्तराखंड राज्य का बड़ा एवं महत्वपूर्ण जिला है जो भागीरथी नदी के किनारे पर बसा हुआ है l यंहा अनेक मंदिर एवं अध्यात्मिक आश्रम बने हुए हैं,अच्छे होटल एवं धर्मशालाएं उपलब्ध हैं l यंहा का काशी विश्वनाथ मंदिर विख्यात है जिसकी वही मान्यता है जो वाराणसी (काशी) के विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की है,यह शिवलिंग स्वयंभू शिवलिंग है जो जमीन से स्वयं प्रकट हुआ है l मंदिर विशाल एवं दर्शनीय है, मंदिर परिसर में ही शक्ति मंदिर भी है जिसमें दुर्गा जी के अतिरिक्त एक शक्तिस्तंभ (त्रिशूल) की पूजा अर्चना की जाती है l इस शक्ति स्तम्भ के विषय में मान्यता है कि देवताओं और असुरों के मध्य जब युद्ध हुआ तो असुरों के विनाश के लिए देवी दुर्गा ने अपना यह त्रिशूल स्वर्ग से पृथ्वी पर फेंका था जो अब यंहा शक्ति स्तम्भ के रूप में विद्यमान है, अष्टधातु से निर्मित यह त्रिशूल 6 मीटर लम्बा एवं नीचे से 90 सेंटीमीटर (गोलाकार) चौड़ा है इसे सुनहरे रंगीन वस्त्रों से सुसज्जित रखा जाता है l उत्तरकाशी में नेहरू पर्वतारोहण प्रशिक्षण केंद्र है जंहा पर्वतारोहियों को विशेषकर बर्फ के पहाड़ों में पर्यटन के लिए प्रशिक्षित किया जाता है l उत्तरकाशी के निकट ही सरकार का मनेरी बांध है जो विद्युत् उत्पादन परियोजना से सम्बंधित है,पर्यटन की दृष्टि से बांध दर्शनीय है,गंगोत्री जाते समय हमने यंहा बांध के जल प्रपात का भरपूर आनंद लिया था l उत्तरकाशी का परशुराम मंदिर भी भव्य एवं दर्शनीय है l
गुप्तकाशी -
उत्तरकाशी में विश्वनाथ मंदिर के दर्शन कर हम गुप्तकाशी के लिए निकले जो यंहा से लगभग 170 किलोमीटर है, रात अधिक हो जाने से हमें उत्तरकाशी से गुप्तकाशी-केदारनाथ मार्ग पर लगभग 25 किलोमीटर दूर नागानी सौड़ (चिन्याली मोड़) पर होटल कृष्ण पैलेस में ही रात्रि विश्राम करना पड़ा l 16 जून को प्रात: 8 बजे हम अपने वाहनों से गुप्तकाशी के लिए रवाना हुए, दूरी एवं पहाड़ी घाटियों के कारण वाहन धीमी गति से ही चलाने होते हैं,सड़कें भी सकड़ी और टूटी हुई थी l रात्रि में लगभग 9 बजे जब हम गुप्तकाशी पहुंचे तो बाज़ार लगभग बंद हो चुके थे l रात्रि में 8 बजे बाद गुप्तकाशी से वाहनों एवं यात्रियों को आगे नहीं जाने दिया जाता, पुलिस प्रशाशन बैरिएर लगा कर मार्ग बंद कर देता है क्योंकि यंहा से आगे का मार्ग दुर्गम और जंगलों से भरा होने के कारण दुर्घटना की संभावना रहती है l एक रेस्टोरेंट में खाना खा कर हमने यंहा के भागीरथ पैलेस होटल में रात्रि विश्राम किया l
गुप्तकाशी का सम्बन्ध पांडवों एवं शिव जी से है तथा जैसा कि नाम है इसके साथ कुछ गुप्त तथ्य जुड़े हुए हैं l यह क़स्बा विशेष बड़ा नहीं है किन्तु उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले का एक रमणीक एवं ऐतिहासिक नगर है जो मन्दाकिनी नदी के किनारे पर बसा हुआ है l यंहा से हिमालय पर्वतों क़ी चौखम्बा चोटी के दृश्य अति मनमोहक है, सूर्य क़ी धूप से पर्वत पर पसरी बर्फ उसे ऐसा चमकदार बना देती है कि ऐसा लगता है मानो चांदी का पहाड़ हो l मन्दाकिनी नदी का बहता पानी कर्ण प्रिय संगीत का एहसास कराता है, आस पास अनेक झरने एवं प्राकृतिक उद्यान पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र हैं l
मान्यताएं -
गुप्तकाशी के सम्बन्ध में अनेक मान्यताएं प्रचलित हैं , एक मान्यता के अनुसार महाभारत के युद्ध के बाद भगवान् श्री कृष्ण एवं अन्य महर्षियों ने पांडवों को उनके द्वारा युद्ध में की गई हत्याओं के लिए प्रायश्चित करने का परामर्श दिया,पांडवों ने इसका उपाय पूछा तो उन्हें भगवान आशुतोष श्री शिवजी की आराधना करने को कहा गया क्योंकि वही उन्हें उनके पापों से मुक्ति प्रदान कर सकते थे l पांडवों ने ऐसा ही किया किन्तु शिव जी पांडवों से कुरुक्षेत्र के महाभारत युद्ध के कारण कुपित थे इसलिए पांडवों के समक्ष प्रकट नहीं होना चाहते थे l पांडवों की दृष्टि से ओझल होने के लिए शिवजी ने नंदी बैल का रूप धारण कर लिया ताकि पांडव उन्हें न तो ढूंढ सकें न ही पहचान सकें l पांडवों ने शिव जी को ढूँढने का बहुत प्रयास किया किन्तु शिवजी गुप्त रूप से इस स्थान (गुप्तकाशी) पर आकर छुप गए l अन्ततोगत्वा पांडवों ने यंहा आकर नंदी बैल के रूप में छिपे शिवजी को पहचान लिया और उन्हें पकड़ना चाहा शिवजी ने यह जानकर दौड़ने का प्रयास किया किन्तु भीम ने नंदी बैल रूपी शिव के पिछले दोनों पांव कास कर पकड़ लिए,शिवजी स्वयं पृथ्वी (जमीन) पर बनी एक गुफा में प्रवेश कर गए किन्तु अपने शरीर का पिछला भाग वे भीम से छुड़ा न पाए और बाद में पांच विभिन्न स्थानों पर शरीर के भिन्न भागों के रूप में प्रकट हुए ये पांच स्थान अब पंच केदार के के रूप में विख्यात हैं जन्हा शिवजी की पूजा उनके विभिन्न अंगो के रूप में की जाती है जिनके विषय में मैं अपनी केदारनाथ यात्रा के आलेख में जानकारी दूंगा l पांडवों ने केदारनाथ से पूर्व उत्तरकाशी में भगवन शिव की आराधना की l गुप्तकाशी में भगवन शिव के अंतर्ध्यान/ गुप्त हो जाने के कारण ही यह स्थान गुप्तकाशी कहलाया l
एक अन्य मान्यता के अनुसार भगवान शिव ने गुप्तकाशी में देवी पार्वती जी के समक्ष गोपनीय रूप से विवाह का प्रस्ताव रखा था इसलिए इस स्थान को गुप्तकाशी कहा गया किन्तु इस मान्यता में विद्वानों में मतभेद है कुश लोग शिव पार्वती के इस प्रसंग को गौरीकुंड से सम्बंधित मानते हैं l
इतिहासकारों की मान्यता के अनुसार सन 1669 में जब मुग़ल सम्राट औरंगजेब ने वाराणसी स्थित काशी विस्वनाथ मंदिर को विध्वंस करना चाहा तो हिन्दुओं ने काशी विश्वनाथ के ज्योतिर्लिंग को सुरक्षित रखने के लिए उसे गुप्त रूप से वाराणसी (काशी) से यंहा स्थानांतरित कर दिया तथा यंही उनके गुप्त रूप से पूजा अर्चना की गई इसलिए इस स्थान का नाम गुप्तकाशी पड़ गया l
गुप्तकाशी में भगवान शिव का विशाल एवं भव्य मंदिर है जिसे विश्वनाथ मंदिर कहा जाता है, इस प्रमुख मंदिर के पास ही अर्धनारीश्वर मंदिर है जंहा शिव पार्वती दोनों के दर्शन एक ही विग्रह में होते हैं, शिवजी के द्वारा पार्वतीजी से विवाह के प्रस्ताव से सम्बंधित प्रसंग को इस मंदिर से यदि जोड़ा जाये तो इस तथ्य को कुछ प्रामाणिकता प्राप्त होती है l इन प्रमुख मंदिरों के अतिरिक्त गुप्तकाशी के चारों ओर अनेक शिवालय हैं जंहा शिवलिंग प्रतिष्ठापित हैं स्थानीय लोगों में इस सम्बन्ध में एक कहावत प्रचलित है कि " जितने पत्थर उतने शंकर " l
गुप्तकाशी के पास अन्य दर्शनीय स्थानों में ऊखीमठ (केदारनाथ का शीतकालीन पूजा स्थल), मणिकर्णिका कुण्ड जंहा भागीरथी (गंगा) एवं यमुना की धाराओं से शिव का अभिषेक दर्शनीय है, गाँधी सरोवर जंहा महात्मा गाँधी के पार्थिव शरीर कि भस्मी प्रवाहित की गई थी, एवं त्रियुगी नारायण मंदिर जंहा शिव - पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था आदि उल्लेखनीय हैं l त्रियुगीनारायण मंदिर परिसर में एक शिला का भी पूजन किया जाता है कहा जाता है कि इस शिला पर ही पार्वती जी के विवाह की कन्यादान रस्म संपन्न हुई थी, इसके अतिरिक्त यंहा एक स्थान पर अखंड अग्नि कुंद है जिसमे तीन युगों से निरंतर अग्नि प्रज्वलित रहती है, ऐसी मान्यता है कि इसी अग्नि के चारों ओर शिव पार्वती ने फेरे लेकर अपने विवाह की रस्म पूरी की थी l तीन युगों से अग्नि प्रज्वलित रहने के कारण यह स्थान त्रियुगी (त्रिजुगी) नारायण कहलाया जाता है l
17 जून को प्रात: परिवार एवं साथ गए सभी सम्बन्धियों ने मुझे जन्मदिन की बधाई,शुभकामना देते हुए मुंह मीठा कराया,यह दिन मेरे लिए बहुत शुभ था क्योंकि मुझे अपना जन्म दिन आज गौरीकुंड में पवित्र स्नान कर श्री केदारनाथ के दर्शन कर मनाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था l 17 जून को हम लोग सुबह जल्दी तैयार होकर बिना स्नान किये गुप्तकाशी से गौरीकुंड जो श्री केदारनाथ का प्रवेश द्वार है के लिए निकल पड़े, गुप्तकाशी से गौरीकुंड की दूरी 33 किलोमीटर है ओर वंहा तक वाहनों के लिए सड़क मार्ग बना हुआ है l
ll जय श्री विश्वनाथ ll
क्रमश: अगले आलेख में गौरीकुंड दर्शन
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