Saturday, 21 July 2012

"गंगोत्री धाम"

हमारी चारधाम यात्रा का दूसरा चरण था "गंगोत्री धाम" - 14 जून 2012 को हम यमुनोत्री से बडकोट,उत्तरकाशी,गंगनानी होते हुए शाम को हरसिल पहुंचे और रात्रि विश्राम यंही किया , हरसिल उत्तराखंड खंड का रमणीक हिल स्टेशन एवं पर्यटन स्थल है जो स्वादिष्ट सेब के बगीचों के लिए भी विख्यात है l शीतकाल में यहाँ पहाड़ों पर हिमपात भी होता है, यंहा बहने वाली नदी का शोर पूरे क्षेत्र को गुंजायमान रखता है l यंहा सेना का बेस कैंप है और पूरा क्षेत्र सेना की सुरक्षा में है, यंहा का लक्ष्मी नारायण मंदिर,शिव मंदिर और दुर्गा मंदिर दर्शनीय है l मंदिर परिसर में ही सेना का हेलीपेड बना हुआ है पहाड़ी पर एक बौद्ध मंदिर भी है,हरसिल से कुछ ही दूरी पर प्राइवेट हेलीपेड भी बना हुआ है l हरसिल में परिवार की महिलाओं ने स्वयं ही खाना बना कर इस रात्रि को एक यादगार पिकनिक का रूप दिया l यमुनोत्री से गंगोत्री की दूरी 228 एवं हरसिल से 25 किलोमीटर है l हरसिल से प्रात: जल्दी उठ कर हम लोग गंगोत्री के लिए रवाना हुए, 25 किलोमीटर का पूरा मार्ग पहाड़ी घाटियों से होकर गुजरता है भागीरथी नदी नीचे की ओर बहती जा रही थी और हम ऊपर की ओर बढ़ते जा रहे थे, नदी का साथ और पहाड़ों की रमणीयता यात्रियों को तरोताजा रखती है l लगभग तीन घंटे सफ़र करके हम अपने गंतव्य स्थान "गंगोत्री" पंहुचे l 
गंगोत्री :

गंगोत्री जिसे गंगा का दिव्य धाम कहा जाता है, नैसर्गिक सौन्दर्य से परिपूर्ण एवं हिमालय की पर्वत श्रृंखलाओं से घिरा एक ऐसा अध्यात्मिक स्थान है जंहा मन को पूर्ण शांति मिलती है l भारत की पवित्र नदियों में गंगा का स्थान सर्वोपरि एवं महत्वपूर्ण है, यह वह नदी है जिसमें भारतीयों की आत्मा बसती है l युगों युगों से भारत की सभ्यता एवं संस्कृति की साक्षी गंगा के जल में दैवीय गुणों की मान्यता है, इसके स्मरण-दर्शन मात्र से ही व्यक्ति के समस्त पाप समाप्त हो जाते हैं l गंगा में स्नान करने एवं इसके जल का पान करने से अश्वमेघ यज्ञ करने का पुण्य प्राप्त होता है l गंगा के विषय में पौराणिक मान्यता है कि यह स्वर्ग से प्रकट होकर पृथ्वी पर अवतरित पतित पावनी नदी है l गंगा के सन्दर्भ में पुराणों एवं वेदों में अनेक आख्यान उपलब्ध हैं जिनका उल्लेख यंहा संभव नहीं है किन्तु इन आख्यानों से यह प्रमाणित होता है कि पृथ्वी पर अवतरित होने से पूर्व गंगा का अस्तित्व स्वर्ग में ही था l एक मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु के पावन चरण धोने के पश्चात उस जल को ब्रम्हा जी ने अपने कमण्डलु में संग्रहित कर लिया और वही जल गंगा के रूप में प्रकट हुआ और ब्रम्हा जी के आदेश पर ही गंगा ने पृथ्वी पर पदार्पण किया l पुराणों एवं शास्त्रों की मान्यता के अनुसार कपिल मुनि के क्रोध से भस्म होकर मृत्यु को प्राप्त सूर्यवंशी राजा सगर के साठ हज़ार पुत्रों की मोक्ष हेतु कालांतर में सगर के पौत्र भागीरथ ने अपनी घोर तपस्या से गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरित होने के लिए प्रसन्न किया था l गंगा ने पृथ्वी पर अवतरित होने के लिए तो भागीरथ को अपनी स्वीकृति प्रदान करदी किन्तु उसके प्रचंड वेग से पृथ्वी पर होने वाले विनाश को रोकने हेतु भागीरथ को चेतावनी देते हुए उचित उपाय करने का आदेश दिया l इसके लिए देवताओं के परामर्श से भागीरथ ने पुन: तपस्या कर भगवान् शिव को प्रसन्न किया और उनसे प्रार्थना की, जिसे स्वीकार कर भगवान शिव ने गंगा को पहले अपनी जटा में धारण किया फिर इसकी सात धाराओं में से केवल एक को पृथ्वी पर प्रवाहित किया था l हिमालय से उद्गम होने से गंगा को हिमालय की पुत्री और पार्वती जी की बहिन भी कहा जाता है, यह कथानक अति विस्तृत एवं गूढ़ है अत: प्रसंगवश यहाँ इतना ही पर्याप्त है, क्योंकि यंहा मेरा विषय वर्तमान "गंगोत्री धाम" की यात्रा मात्र है l

गंगा का मूल उद्गम स्थान वर्तमान गंगोत्री मंदिर से 18 किलोमीटर ऊपर समुद्र तल से 4200 मीटर की ऊंचाई पर हिमालय पर्वतों के मध्य स्थित गौमुख ग्लेशियर है जंहा केवल पैदल मार्ग से ही जाया जा सकता है, इच्छा तो बहुत थी किन्तु समयाभाव के कारण हम वंहा नहीं जा सके l गंगोत्री धाम समुद्र तल से 3140 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है इसके चारों और हिमालय के ऊंचे पर्वत हैं जिनके शिखर दूर से ऐसे लगते हैं मानो शिवलिंग के रूप में भगवन शिव विराजमान हैं , पहाड़ों पर बर्फ जून-जुलाई के महीनों में भी दिखाई देती है l गंगोत्री मंदिर से आधा किलोमीटर पहले ही विशाल भव्य स्वागत द्वार बना हुआ है जहाँ तक वाहन जा सकते हैं,इस दृष्टि से गंगोत्री धाम की यात्रा सुगम है क्योंकि यंहा यात्रियों को पैदल नहीं चलना पड़ता l गंगोत्री परिसर में पहुँचते ही साक्षात् गंगा के दर्शन कर मन प्रफुल्लित हो गया, ऊंचे हिमालय के पर्वतों के मध्य स्थित गोमुख से निकल कर आती भागीरथी हर किसी का मन मोह लेती है, किनारे से पर्वतों की चोटियाँ मन को आकर्षित करती हैं, हिमाच्छादित पर्वतों पर सूर्य की किरणों से उनका ऐसा श्रृंगार होता है कि उनकी स्वर्णिम आभा से दृष्टि हटती ही नहीं है, सूर्य की धूप से ये पर्वत ऐसे दमकते हैं मानो चांदी के पर्वत हों l कुछ देर तक हमने प्रकृति और गंगा के इस सौन्दर्य का आनंद लिया और फिर गंगा/भागीरथी के पावन जल में स्नान किया , जल इतना ठंडा था कि सर पर पानी डालते ही एक बार तो मस्तिस्क में शून्यता व्याप्त हो गई, लेकिन फिर स्नान करने में आनंद आया , किनारे पर गहराई अधिक नहीं होने से पानी में डुबकी लगाना संभव नहीं है और नदी के मध्य में पानी का वेग इतना प्रबल है कि वहां तक जाने की किसी कि हिम्मत नहीं होती, सभी अन्य यात्री भी लोटे में जल भर कर ही स्नान कर रहे थे, हमने भी ऐसे ही स्नान किया,यद्यपि प्रयास करके सभी ने अपने सर अवश्य गंगा के बहते जल में डुबोये l भागीरथी के दोनों और रमणीक तट एवं घाट बने हुए हैं जहाँ घंटों बैठ कर यात्री /पर्यटक अध्यात्म और प्रकृति के संगम का आनंद लेते हैं तथा मन में एक ऐसी शांति का अनुभव करते हैं जिसकी हम सदैव तलाश करते हैं l गंगा के इस तीव्र प्रवाह में मन कि अशांति और मानसिक चिंताएं स्वयं गंगा में ही प्रवाहित हो जाती हैं,और व्यक्ति स्वयं को भीतर से प्रफुल्लित महसूस करता है l स्नान के पश्चात हमने जयपुर क्षेत्र के स्थानीय पंडितजी से भागीरथी घाट पर पूजा कराई, कहा जाता है कि यहाँ गंगा के दर्शन-स्नान करने वाले यात्री सर्वथा पाप मुक्त हो जाते हैं तथा इस स्थान पर अपने दिवंगत पूर्वजों का स्मरण करने व गंगा मैया से प्रार्थना करने पर उनको मोक्ष गति प्राप्त होती है l पूजा-अर्चना के बाद हम गंगोत्री मंदिर में गंगा के दर्शन करने गए जो भागीरथी तट के समीप ही विशाल पहाड़ी पर बना हुआ है l

गंगोत्री मंदिर -

गंगोत्री मंदिर की स्थापना का संकल्प आदि शंकराचार्य द्वारा किया गया था जिसका निर्माण गोरखा रेजिमेंट के लेफ्टिनेंट जनरल अमर सिंह थापा ने अठारहवीं शताब्दी में करवाया था जिसके निश्चित काल की समुष्ट जानकारी नहीं है, कालांतर में 1935 में जयपुर के महाराजा माधोसिंह ने इसका पुनर्निर्माण,नवीनीकरण एवं सौन्दर्यीकरण करवाया यही कारण है कि इसके निर्माण में जयपुर की स्थापत्य कला के दर्शन होते हैं l सफ़ेद पत्थर से बना मंदिर भव्य एवं आकर्षक है इसकी छत सिल्वर रंग की बनी हुई हैं जो चाँदी की सी दिखाई देती हैं, मंदिर के चारों और छतरियां बनी हुई हैं तथा पंडाल में प्रदक्षिणा मार्ग बना हुआ है , मंदिर के शिखर पर स्वर्ण कलश सुशोभित हैं l मंदिर परिसर में गणेश जी,हनुमान जी एवं शिव जी के छोटे मंदिर भी हैं जो दर्शनीय हैं l मंदिर के सामने एक पहाड़ी पर शिव,गंगा,भागीरथ आदि की प्रस्तर प्रतिमाएं स्थापित हैं जिन्हें देख कर लगता है कि हम हिमालय में इन सभी के दर्शन कर रहे हैं l

गर्भ गृह -

मंदिर के गर्भ गृह में मध्य में माँ गंगा की धवल मूर्ती है जो पूर्ण श्रंगारित है, गंगा मैया के अतिरिक्त यमुना मैया,गणेश,भगवन शिव,माँ सरस्वती,दुर्गा, एवं भागीरथ ऋषि की मूर्तियाँ स्थापित हैं , यमुनोत्री मंदिर की भांति ही यहाँ भी एक चाँदी की चलायमान मूर्ती है जो गंगा मैया की है,शीतकाल में जब मंदिर के पट छै माह के लए बंद होते हैं तो यही मूर्ती गंगोत्री धाम से 25 किलोमीटर पूर्व हरसिल के निकट मुखबा गाँव में स्थित गंगा के शीतकालीन मंदिर में पारंपरिक तरीके से शोभा यात्रा के रूप में एक सुसज्जित पालकी में रख कर दीपावली के बाद यम द्वितीया (भाई दूज) को ले जाई जाती है इस अवधि में गंगा की पूजा अर्चना वंही होती है, पुन: अक्षय तृतीया को यह मूर्ती गंगोत्री धाम लाई जाती है l इस अवधि में गंगोत्री धाम हिम क्षेत्र में परिवर्तित हो जाता है, और दक्ष पर्वतारोहियों के अतिरिक्त यहाँ कोई नहीं आता l

भागीरथ शिला -

मंदिर परिसर में ही नदी के तट के निकट एक छोटे गोलाकार गुम्बद नुमा मंदिर में एक शिला के दर्शन है, कहा जाता है कि इसी शिला पर योग ध्यानस्थ होकर भागीरथ ऋषि ने गंगा को पृथ्वी पर अवतरित होने के लिए घोर तपस्या की थी, शिला के समीप ही काले पत्थर से निर्मित भागीरथ ऋषि की ध्यानस्थ मूर्ती स्थापित है, यात्री यहाँ पूजा कर अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए प्रार्थना करते है l इस स्थान को भागीरथ तपस्या स्थली कहा जाता है l

जलमग्न शिवलिंग -

मंदिर के समीप ही भागीरथी नदी में पत्थर का बना प्राकृतिक शिवलिंग है जो जलमग्न है,यह शीतकाल में जब नदी के पानी का स्तर कम होता है तभी दिखाई देता है l मान्यता है कि इसी स्थान पर भगवन शिव ने भागीरथ ऋषि को गंगा कि धारा प्रदान की थी l

सूर्य कुंड/ गौरी कुंड एवं भागीरथ प्रपात -

भागीरथी नदी के दाहिनी ओर गंगोत्री मंदिर आदि हैं तो बाँई नदी का पाट पार कर सूर्य कुंड, गौरी कुंड एवं भागीरथी प्राप्त आदि स्थान हैं, जहाँ अनेक झरने हैं जिनका वेग अत्यंत तीव्र एवं जल बिलकुल स्वच्छ एवं धवल है, निरंतर पानी के तीव्र वेग से पहाड़ की चट्टानों ने गौमुख, सूर्य आदि के प्राकृतिक रूप धारण कर लिए हैं , यह सभी स्थान रमणीक एवं दर्शनीय हैं l

तपोवन / नंदनवन -

गंगोत्री धाम से गौमुख के मध्य भोजवासा में भोजपत्र के वृक्ष देखे जा सकते हैं l 18 किलोमीटर ऊपर स्थित गौमुख ग्लेशियर से एक मार्ग तपोवन एवं एक मार्ग नंदनवन जाता है, यह दोनों ही मार्ग अति दुर्गम हैं l तपोवन गौमुख से चार किलोमीटर की विकट चढ़ाई के बाद मैदानी भाग में है, 6543 मीटर की ऊँचाई पर स्थित हिम शिवलिंग चोटी दर्शनीय है जिसके बारे में कहा जाता है कि इसी स्थान पर भगवन शिव ने गंगा को अपनी जटा धारण किया था l नंदनवन में रहने खाने की कोई व्यवस्था नहीं है, दक्ष एवं साहसी पर्वतारोही पर्यटक अपनी स्वयं की व्यवस्था के साथ पोटर गाइड कि सहायता से वंहा पहुँचते हैं, नंदनवन से आगे सुकिताल, कालिंदी खाल, होते हुए एक मार्ग दुर्गम पहाड़ों से होते हुए बद्रीनाथ के लिए जाता है l

गंगोत्री से जुडी परम्पराएँ - गंगोत्री से यात्री गंगाजल भर कर लाते है जिसे रामेश्वरम एवं केदारनाथ ज्योतिर्लिंग पर चढ़ाया जाता है l ll जय गंगा मैया की ll

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